राष्ट्रीय स्तर का पुरस्कार जीत कर लौटे संगीतज्ञ प्रदीप के स्वागत में प्रशंसकों ने विशेष तैयारी की थी। खुली जीप में जैसे ही उन्होंने अपनी गली में प्रवेश किया एक ज़ोरदार हर्षनाद हुआ। सभी तरफ से उन पर व साथ बैठी उनकी पत्नी पर पुष्प बरस रहे थे।
गली के एक मकान के ऊपरी तल्ले की खिड़की खुली थी। प्रभा वहाँ से झाँक रही थी। वह प्रदीप के बचपन की सखी जो उसे बहुत प्रेम करती थी। लेकिन जाति के बंधन के कारण रिश्ता नहीं हो सका। उसने आजीवन कुंवारी रहने का निश्चय कर लिया।
प्रभा स्नेह भरी दृष्टि से सब देख रही थी। उसके पास पुष्प नहीं थे किंतु नेत्रों से मोती झर रहे थे।
गली के एक मकान के ऊपरी तल्ले की खिड़की खुली थी। प्रभा वहाँ से झाँक रही थी। वह प्रदीप के बचपन की सखी जो उसे बहुत प्रेम करती थी। लेकिन जाति के बंधन के कारण रिश्ता नहीं हो सका। उसने आजीवन कुंवारी रहने का निश्चय कर लिया।
प्रभा स्नेह भरी दृष्टि से सब देख रही थी। उसके पास पुष्प नहीं थे किंतु नेत्रों से मोती झर रहे थे।
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