मदनलाल आईने के सामने खड़े खुद को देख रहे थे।
बेटे ने व्यापार की सारी बारीकियां समझ ली थीं। वह अच्छी तरह से उनका सहयोग कर रहा था।
मदनलाल कुछ दिनों की छुट्टी लेने का विचार कर रहे थे। तभी बीमारी की वजह से कुछ दिन अस्पताल में बिताने पड़े। उसके बाद वह अघोषित अवकाश ग्रहण पर चले जाते।
आरंभ में बेटा उन्हें हर बात की जानकारी देता था। वह भी उचित परामर्श देते थे। उसके बाद सब बंद हो गया। अब तो पूछने पर भी बेटा 'परेशान ना हों सब ठीक है' कह कर टाल देता था।
उन्हें खुशी थी कि बेटा अपनी ज़िम्मेदारी समझ रहा है। लेकिन जिस व्यापार को उन्होंने अपने खून पसीने से सींचा था उसमें अपनी उपियोगिता कम हो यह उन्हें अच्छा नहीं लगता था।
वह बाहर आए तो बेटा उन्हें देख कर हैरान रह गया।
"पापा आप कहाँ जा रहे हैं?"
"दफ्तर, कुछ दिन बीमार हुआ था। लेकिन शरीर अभी काम कर रहा है।"
बेटे ने व्यापार की सारी बारीकियां समझ ली थीं। वह अच्छी तरह से उनका सहयोग कर रहा था।
मदनलाल कुछ दिनों की छुट्टी लेने का विचार कर रहे थे। तभी बीमारी की वजह से कुछ दिन अस्पताल में बिताने पड़े। उसके बाद वह अघोषित अवकाश ग्रहण पर चले जाते।
आरंभ में बेटा उन्हें हर बात की जानकारी देता था। वह भी उचित परामर्श देते थे। उसके बाद सब बंद हो गया। अब तो पूछने पर भी बेटा 'परेशान ना हों सब ठीक है' कह कर टाल देता था।
उन्हें खुशी थी कि बेटा अपनी ज़िम्मेदारी समझ रहा है। लेकिन जिस व्यापार को उन्होंने अपने खून पसीने से सींचा था उसमें अपनी उपियोगिता कम हो यह उन्हें अच्छा नहीं लगता था।
वह बाहर आए तो बेटा उन्हें देख कर हैरान रह गया।
"पापा आप कहाँ जा रहे हैं?"
"दफ्तर, कुछ दिन बीमार हुआ था। लेकिन शरीर अभी काम कर रहा है।"
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