"पैसे दो।" अजय ने अपनी पत्नी को धमकाया।
"नहीं दूंगी। बंटी बीमार है। दवा लानी है।" कह कर उसकी पत्नी ने मुठ्ठी कस कर भींच ली।
नशे की लत के चलते अजय के जीवन में अब रिश्ते नाते किसी के लिए भी जगह नहीं बची थी।
नशे ने उसे इस तरह जकड़ा कि सब छूट गया था। ज़िंदगी तो बस शराब की बोतल में बंद हो गई थी।
ना आगे जाने की राह थी ना पीछे लौट सकता था। पांव के नीचे दलदल था जो धीरे धीरे उसे निगल रहा था।
बेटे की बीमारी का भी अजय पर कोई असर नहीं हुआ। उसने जबरन पत्नी से पैसे छीने और ठेके की तरफ बढ़ गया।
"नहीं दूंगी। बंटी बीमार है। दवा लानी है।" कह कर उसकी पत्नी ने मुठ्ठी कस कर भींच ली।
नशे की लत के चलते अजय के जीवन में अब रिश्ते नाते किसी के लिए भी जगह नहीं बची थी।
नशे ने उसे इस तरह जकड़ा कि सब छूट गया था। ज़िंदगी तो बस शराब की बोतल में बंद हो गई थी।
ना आगे जाने की राह थी ना पीछे लौट सकता था। पांव के नीचे दलदल था जो धीरे धीरे उसे निगल रहा था।
बेटे की बीमारी का भी अजय पर कोई असर नहीं हुआ। उसने जबरन पत्नी से पैसे छीने और ठेके की तरफ बढ़ गया।
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें