सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

भरपाई

मंगल उदास सा बैठा अपने बेटे को देख रहा था। बेटा भी किताब में मुंह छिपाए बैठा था। कभी कभी कनखियों से उसे देख लेता था। 
गैर इरादतन हत्या के मामले में मंगल को सात साल की सजा हो गई थी। वह कल ही जेल से छूट कर आया था। 
उसकी पत्नी संतो उसके बेटे को गोद में लेकर उससे मिलने जेल जाती थी। लेकिन जब बेटा समझने लायक हो गया तो मंगल ने उसे हिदायत दी कि वह उसे लेकर ना आया करे। जेल में वह बेटे को देखने के लिए तरसता था।
किंतु जब से वह घर लौट कर आया था उसने महसूस किया था कि बेटे के व्यवहार में उसके लिए एक अजनबीपन था।
"क्या है जी बहुत उदास हो।" संतो ने पूँछा।
"छह महीने का छोड़ कर गया था बिट्टू को। अब बड़ा हो गया है। इसे बढ़ते हुए नहीं देख पाया। अब चाह कर भी बीता समय लौटा नहीं सकता हूँ।"
संतो ने उसके कंधे पर हाथ रख कर उसे आश्वासन दिया "बीता समय तो नहीं लौटेगा लेकिन समय के साथ रिश्ते में मज़बूती आ सकती है।"
संतो ने बेटे को बुला कर कहा "बिट्टू अपने पापा को बताओ कि तुमने स्कूल में क्या सीखा है।"
बिट्टू कुछ संकोच के साथ मंगल के पास आया। मंगल ने उसे प्रेम से अपनी गोद में बिठा लिया। बिट्टू उसको अपनी किताब दिखाने लगा।

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

अपडेट

  रागिनी ने बॉस के केबिन में प्रवेश किया तो उसने उसे बैठने को कहा। उसके बाद अपनी सीट से उठ कर वह रागिनी के पास आकर टेबल पर बैठ गया। ऊपर से नीचे तक उसे भेदती निगाहों से देख कर बोला। "तुम्हारी ड्रेस तो बहुत सुंदर है। बहुत अच्छी फिटिंग है।" रागिनी ने बिना कुछ कहे अपना मोबाइल उठा लिया। यह देख कर बॉस ने कहा। "यह क्या कर रही हो?" "सर आप अपनी बात जारी रखिए। मैं ट्विटर पर अपडेट कर रही हूँ।" बॉस तुरंत अपनी सीट पर वापस चला गया। "वो मेरा मतसब था कि मेरी पत्नी को भी कुछ टिप्स दे दो। वह कपड़ों को लेकर परेशान...." रागिनी ने बात काटते हुए कहा। "अगर कोई काम ना हो तो मैं जाऊँ।" बॉस के कुछ कहने से पहले रागिनी कमरे से बाहर चली गई।

कदम

बहुत दिनों तक सोंचने के बाद आरूषि ने अपना फैसला अपनी माँ को सुनाया. वह आश्चर्यचकित रह गईं. उसकी माँ ने कुछ गुस्से में कहा "तुम आज के बच्चे कुछ सोंचते भी हो या नही. शादी नही करनी है ना सही. अब बच्चा गोद लेने की बात. अकेली कैसे पालोगी उसे." आरुषि शांत स्वर में बोली "मम्मी तुम जानती हो कि मैं बिना सोंचे कुछ नही करती. जहाँ तक अकेले पालने का सवाल है तो जीजा जी के ना रहने पर दीदी भी तो बच्चों को अकेले पाल रही है." "पर जरूरत क्या है." उसकी माँ ने विरोध किया. आरुषि ने समझाते हुए कहा "जरूरत है मम्मी. मुझे भी अपने जीवन में कोई चाहिए." "लोगों को क्या कहेंगे." उसकी माँ ने फिर अपनी बात कही. "वह मैं देख लूंगी." अपनी माँ के कुछ कहने से पहले ही वह कमरे से बाहर चली गई. आरुषि एक स्वावलंबी लड़की थी. वह शांत और गंभीर थी. अपने निर्णय स्वयं लेती थी. उसने निश्चय किया था कि वह अविवाहित रहेगी. इसलिए दबाव के बावजूद भी उसने अपना निर्णय नही बदला. लेकिन अब वह अपने आस पास कोई ऐसा चाहती थी जिसे वह अपना कह सके. एक बच्चा जिसे वह प्यार दे सके. वह ऐसा बच्चा

गिरगिट

    गिरगिट नव्या की ज़िंदगी में कुछ सही नहीं चल रहा था। सरकारी नौकरी के लिए कई परीक्षाएं दीं। कुछ में असफल रही। कुछ के परिणाम अभी तक नहीं आए थे। इसी बीच उसकी शादी की बात चली। सांवले रंग की भरपाई के लिए गाड़ी की मांग हुई। वह उसके पिता की क्षमताओं के बाहर था। बात खत्म हो गई। इस समय वह बहुत परेशान थी। सोच रही थी कि कोई प्राइवेट नौकरी कर ले। वह अखबार में नौकरी के इश्तिहार देखने लगी। कुछ को मार्क किया। एक जगह फोन मिलाने जा रही थी कि उसकी सहेली का फोन आया। फोन उठाते ही उसने मुबारकबाद दी। नव्या हैरान थी कि मुबारकबाद किस बात की। सहेली ने बताया कि रुके हुए परिणामों में से एक परीक्षा का नतीजा आ गया है। वह उस परीक्षा में उत्तीर्ण हो गई है। नव्या बहुत खुश हुई। उसने खुद भी इंटरनेट पर परिणाम देखा। वह इंटरव्यू की तैयारी करने लगी। इस बार उसने कोई कसर नहीं छोड़ी। इंटरव्यू में भी पास हो गई। उसकी सरकारी नौकरी लग गई। नौकरी लगने के एक महीने बाद ही जिन लोगों ने रिश्ता तोड़ा था वह पुनः उसके घर आए। लड़के की माँ ने कहा, "मेरा बेटा बहुत नाराज़ हुआ। उसने कहा कि गुण देखे जाने चाहिए। रूप रंग नहीं। लड़की ने अप