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ढाई फुटिया

बस्ती में उसकी दुकान थी. यहाँ रोजमर्रा का सामान मिलता था. उसके छोटे कद के कारण सभी उसे ढाई फुटिया कहते थे. यह बात उसे बुरी लगती थी फिर भी खुद को दुख में डुबो लेने की बजाय वह सदा प्रसन्न रहता था. उसके मन में जो भी भाव उत्पन्न होते उन्हें शब्दों में पिरोकर छोटी छोटी कविताओं की शक्ल में अपनी डायरी में लिख लेता था. कोई भी उसके इस हुनर के बारे में नहीं जानता था सिवाय मेनका के.
मेनका एक म्यूज़िकल ग्रुप की सदस्य थी. यह ग्रुप छोटे शहरों कस्बों तथा गांव में अपना कार्यक्रम करने जाता था. मेनका का गला तो अच्छा था ही किंतु अपने नृत्य के कारण वह अधिक प्रसिद्ध थी. पुराने और नए फिल्मी गानों पर जब वह नाचती थी तो लोग आहें भरने लगते थे. अपने क्षेत्र में उसकी किसी फिल्मी हिरोइन से कम शोहरत नहीं थी. 
एक मेनका ही थी जो उसकी लिखी कविताओं को ध्यान से सुनती और तारीफ भी करती थी. मेनका सदैव उसे पवन कह कर ही बुलाती थी. पवन को उसकी यह बात बहुत अच्छी लगती थी. वह मेनका में एक सच्चा हमदर्द और दोस्त देखता था. मेनका के प्रोत्साहन से वह अपने लेखन पर और अधिक ध्यान देने लगा था. 
स्थानीय समाचार पत्र के साहित्य स्तंभ में उसने एक कविता लेखन प्रतियोगिता के बारे में पढ़ा. उसने दिए गए विषय पर एक कविता लिख कर भेज दी. जब परिणाम आया तो उसकी कविता उसके चित्र और नाम के साथ छपी थी. 
यह खुशखबरी सुनाने के लिए वह मेनका के पास दौड़ा गया. वह दरवाज़ा खटखटाने ही वाला था कि उसे मेनका की हंसी सुनाई पड़ी. वह किसी से कह रही थी "देखो तो उस ढाई फुटिया की फोटो अखबार में छपी है. कैसा लग रहा है." एक और ठहाका गूंज उठा.
"पर तुम तो उसे बहुत भाव देती हो." किसी पुरुष ने प्रश्न किया. 
"वो तो इस लिए कि इसी बहाने उसकी दुकान से कितना सामान मुफ्त मिल जाता है. वरना बहुत बोर करता है."
पवन के हाथ से अखबार छूट कर गिर गया. जिसे वह अपना दोस्त समझता था वह उसका फायदा उठा रही थी. कुछ पलों तक उसे अपना अस्तित्व हीन लगने लगा. तभी उसकी नज़र अखबार में छपे अपने नाम व चित्र पर पड़ा. उसने उसे उठाया और मुस्कुरा उठा. उसने अपना वजूद साबित कर दिया था.

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