पोलियोग्रस्त अविनाश का चयन आई ए.एस के लिए हुआ था. एक प्रसिद्ध न्यूज़ चैनल का रिपोर्टर उसका इंटरव्यू लेने आया था. बातचीत करते हुए उसने अविनाश से पूँछा "अपनी शारीरिक चुनौती के बावजूद आपने यह सफलता अर्जित की. इसके पीछे आपकी प्रेरणा क्या रही."
अविनाश उसे उस कक्ष में ले गया जहाँ वह पढ़ाई करता था. वहाँ उसकी स्टडी टेबल के पास स्टूल पर एक मूर्ति रखी थी. उसकी ओर इशारा कर बोला "यह मूर्ति मेरी प्रेरणा है."
मूर्ति कुछ अजीब थी. उसके एक कान पर हाथ रख उसे बंद किया गया था और दूसरा कान खुला था. रिपोर्टर की उलझन को देख उसने समझाया "यह मूर्ति मेरे पापा लाए थे. उन्होंने मुझे समझाया कि कुछ लोग तुम्हारी शारीरिक कमी का मज़ाक उड़ाएंगे या कुछ ऐसा कहेंगे जो तुम्हें निरुत्साहित करेगा. उनके लिए तुम इस मूर्ति की तरह अपना कान बंद रखना. दूसरा कान उन बातों के लिए खुला रखना जो तुम्हें हिम्मत दें. जो जीवन में सकारात्मकता लाएं. मैंने ऐसा ही किया."
रिपोर्टर उसके जवाब से प्रभावित हुआ. उसे भविष्य की शुभ कामनाएं देकर चला गया.
अविनाश उसे उस कक्ष में ले गया जहाँ वह पढ़ाई करता था. वहाँ उसकी स्टडी टेबल के पास स्टूल पर एक मूर्ति रखी थी. उसकी ओर इशारा कर बोला "यह मूर्ति मेरी प्रेरणा है."
मूर्ति कुछ अजीब थी. उसके एक कान पर हाथ रख उसे बंद किया गया था और दूसरा कान खुला था. रिपोर्टर की उलझन को देख उसने समझाया "यह मूर्ति मेरे पापा लाए थे. उन्होंने मुझे समझाया कि कुछ लोग तुम्हारी शारीरिक कमी का मज़ाक उड़ाएंगे या कुछ ऐसा कहेंगे जो तुम्हें निरुत्साहित करेगा. उनके लिए तुम इस मूर्ति की तरह अपना कान बंद रखना. दूसरा कान उन बातों के लिए खुला रखना जो तुम्हें हिम्मत दें. जो जीवन में सकारात्मकता लाएं. मैंने ऐसा ही किया."
रिपोर्टर उसके जवाब से प्रभावित हुआ. उसे भविष्य की शुभ कामनाएं देकर चला गया.
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