सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

उजाले की ओर


आज पूरे दो साल के बाद वह जीवन की नई शुरुआत के लिए बाहर निकलने की तैयारी कर रही थी. पिछले दो साल उसके लिए बहुत कठिन थे.  वह अतीत के सागर में डूब गई.
वह बेहद खूबसूरत थी. अतः उसका नाम रूपा रखा गया था. लेकिन सुंदरता के साथ साथ प्रकृति ने उसे और भी खूबियां प्रदान की थीं. वह बहुत बुद्धिमान थी. साहस से लबरेज़ थी. अपने आस पास होने वाले अन्याय के विरुद्ध बेखौफ आवाज़ उठाती थी. माँ ने कई बार समझाया था कि इस प्रकार लोगों से विरोध लेना खतरनाक हो सकता है. किंतु वह चुप बैठने वालों में नहीं थी.
आई.पी.एस अधिकारी बनने की चाह लिए उसने कॉलेज में दाखिला लिया. कॉलेज में नए छात्रों के परिचय के नाम पर स्टूडेंट यूनियन का दबंग नेता और उसके चेले विद्यार्थियों को परेशान करते थे. छात्राओं के साथ अभद्र व्यवहार करते थे. रूपा ने इसका विरोध किया़. दबंगों को उसका विरोध रास नहीं आया. उन्होंने उसे धमकाया किंतु वह पीछे नहीं हटी. अपनी हार से तिलमिलाए दबंगों ने कॉलेज जाते समय उस पर तेजाब फेंक दिया.
तेजाब ने उसे बुरी तरह जला दिया. उसका चेहरा बिगड़ गया. एक आँख से दिखना बंद हो गया. लंबे समय तक इलाज चला. कई सर्जरी हुईं. इस बीच वह गहन अंधकार में डूब गई थी. भयंकर पीड़ा से जूझती रही. मन की वेदना उसे तोड़ने का प्रयास कर रही थी. लेकिन अन्याय के विरुद्ध लड़ने वाली रूपा हार मानने को तैयार नहीं थी. वह शरीर के कष्टों से लड़ती रही. मन को निराशा की गर्त में डूबने से रोकती रही.
अंत में वह जीत गई. काले अंधेरों से उम्मीद की किरण फूटने लगी. अब तक अपराधियों को सजा नहीं मिली थी. उसने गुनहगारों को सजा दिलाने के लिए कमर कस ली थी. वह फिर से अपनी पहचान बनाने को तैयार थी.
विचारों से बाहर निकल कर उसने एक बार अपना चेहरा आईने में देखा. अब पहले वाली बात नहीं थी. लेकिन तेजाब उसके हौंसले को नहीं जला पाया था. वह एक और जंग को तैयार थी.

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

अपडेट

  रागिनी ने बॉस के केबिन में प्रवेश किया तो उसने उसे बैठने को कहा। उसके बाद अपनी सीट से उठ कर वह रागिनी के पास आकर टेबल पर बैठ गया। ऊपर से नीचे तक उसे भेदती निगाहों से देख कर बोला। "तुम्हारी ड्रेस तो बहुत सुंदर है। बहुत अच्छी फिटिंग है।" रागिनी ने बिना कुछ कहे अपना मोबाइल उठा लिया। यह देख कर बॉस ने कहा। "यह क्या कर रही हो?" "सर आप अपनी बात जारी रखिए। मैं ट्विटर पर अपडेट कर रही हूँ।" बॉस तुरंत अपनी सीट पर वापस चला गया। "वो मेरा मतसब था कि मेरी पत्नी को भी कुछ टिप्स दे दो। वह कपड़ों को लेकर परेशान...." रागिनी ने बात काटते हुए कहा। "अगर कोई काम ना हो तो मैं जाऊँ।" बॉस के कुछ कहने से पहले रागिनी कमरे से बाहर चली गई।

कदम

बहुत दिनों तक सोंचने के बाद आरूषि ने अपना फैसला अपनी माँ को सुनाया. वह आश्चर्यचकित रह गईं. उसकी माँ ने कुछ गुस्से में कहा "तुम आज के बच्चे कुछ सोंचते भी हो या नही. शादी नही करनी है ना सही. अब बच्चा गोद लेने की बात. अकेली कैसे पालोगी उसे." आरुषि शांत स्वर में बोली "मम्मी तुम जानती हो कि मैं बिना सोंचे कुछ नही करती. जहाँ तक अकेले पालने का सवाल है तो जीजा जी के ना रहने पर दीदी भी तो बच्चों को अकेले पाल रही है." "पर जरूरत क्या है." उसकी माँ ने विरोध किया. आरुषि ने समझाते हुए कहा "जरूरत है मम्मी. मुझे भी अपने जीवन में कोई चाहिए." "लोगों को क्या कहेंगे." उसकी माँ ने फिर अपनी बात कही. "वह मैं देख लूंगी." अपनी माँ के कुछ कहने से पहले ही वह कमरे से बाहर चली गई. आरुषि एक स्वावलंबी लड़की थी. वह शांत और गंभीर थी. अपने निर्णय स्वयं लेती थी. उसने निश्चय किया था कि वह अविवाहित रहेगी. इसलिए दबाव के बावजूद भी उसने अपना निर्णय नही बदला. लेकिन अब वह अपने आस पास कोई ऐसा चाहती थी जिसे वह अपना कह सके. एक बच्चा जिसे वह प्यार दे सके. वह ऐसा बच्चा

गिरगिट

    गिरगिट नव्या की ज़िंदगी में कुछ सही नहीं चल रहा था। सरकारी नौकरी के लिए कई परीक्षाएं दीं। कुछ में असफल रही। कुछ के परिणाम अभी तक नहीं आए थे। इसी बीच उसकी शादी की बात चली। सांवले रंग की भरपाई के लिए गाड़ी की मांग हुई। वह उसके पिता की क्षमताओं के बाहर था। बात खत्म हो गई। इस समय वह बहुत परेशान थी। सोच रही थी कि कोई प्राइवेट नौकरी कर ले। वह अखबार में नौकरी के इश्तिहार देखने लगी। कुछ को मार्क किया। एक जगह फोन मिलाने जा रही थी कि उसकी सहेली का फोन आया। फोन उठाते ही उसने मुबारकबाद दी। नव्या हैरान थी कि मुबारकबाद किस बात की। सहेली ने बताया कि रुके हुए परिणामों में से एक परीक्षा का नतीजा आ गया है। वह उस परीक्षा में उत्तीर्ण हो गई है। नव्या बहुत खुश हुई। उसने खुद भी इंटरनेट पर परिणाम देखा। वह इंटरव्यू की तैयारी करने लगी। इस बार उसने कोई कसर नहीं छोड़ी। इंटरव्यू में भी पास हो गई। उसकी सरकारी नौकरी लग गई। नौकरी लगने के एक महीने बाद ही जिन लोगों ने रिश्ता तोड़ा था वह पुनः उसके घर आए। लड़के की माँ ने कहा, "मेरा बेटा बहुत नाराज़ हुआ। उसने कहा कि गुण देखे जाने चाहिए। रूप रंग नहीं। लड़की ने अप