जूही ने पढ़ते पढ़ते अचानक ही किताब बंद कर दी़. उपन्यास की नायिका अपने अस्तित्व की रक्षा के लिए संघर्ष कर रही थी. उसका अपना अस्तित्व भी तो बड़े घर की बहू के टैग में सिमट कर रह गया था. 'तुम इसकी रक्षा के लिए क्या कर रही हो.' अचानक उठे इस प्रश्न ने उसके मन में हलचल मचा दी.
विवाह से पहले उसकी छोटी सी ही सही अपनी पहचान थी. एक नर्सरी स्कूल की अध्यापिका थी वह. अपने अनुसार जीवन जी रही थी. जब इतने बड़े घर से रिश्ता आया तो माता पिता उसकी किस्मत को सराहने लगे. इतने बड़े घर की बहू बनने की बात से वह भी खुश थी.
विवाह के बाद ही वह जान पाई कि इस खुशी के बदले उसे क्या खोना पड़ा था. वह इस बड़े घर की प्रतिष्ठा के पिंजरे में कैद होकर रह गई थी. अपनी मर्ज़ी से कुछ भी नहीं कर सकती थी.
कई दिनों से उसका मन उसे धीरे धीरे अपने अस्तित्व की रक्षा के लिए कह रहा था. लेकिन आज यह उपन्यास पढ़ते हुए उसके मन ने यह ज्वलंत प्रश्न उठा दिया. इसलिए पुस्तक बंद कर वह इस प्रश्न पर मनन करने लगी.
विवाह से पहले उसकी छोटी सी ही सही अपनी पहचान थी. एक नर्सरी स्कूल की अध्यापिका थी वह. अपने अनुसार जीवन जी रही थी. जब इतने बड़े घर से रिश्ता आया तो माता पिता उसकी किस्मत को सराहने लगे. इतने बड़े घर की बहू बनने की बात से वह भी खुश थी.
विवाह के बाद ही वह जान पाई कि इस खुशी के बदले उसे क्या खोना पड़ा था. वह इस बड़े घर की प्रतिष्ठा के पिंजरे में कैद होकर रह गई थी. अपनी मर्ज़ी से कुछ भी नहीं कर सकती थी.
कई दिनों से उसका मन उसे धीरे धीरे अपने अस्तित्व की रक्षा के लिए कह रहा था. लेकिन आज यह उपन्यास पढ़ते हुए उसके मन ने यह ज्वलंत प्रश्न उठा दिया. इसलिए पुस्तक बंद कर वह इस प्रश्न पर मनन करने लगी.
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