सुमन बहुत परेशान थी. माता पिता समाज सबके विरोध की परवाह किए बिना उसने अशोक का हाथ थामा था. जिस पर सबसे अधिक भरोसा कर अपना सब कुछ छोड़ा था वही दगाबाज़ निकला. उसे बीच मझधार में छोड़ कर भाग गया. अब या तो स्वयं को हालातों के भंवर में डुबो देती या फिर किनारा पाने के लिए हाथ पैर मारती. हार मानने की बजाय उसने संघर्ष का पथ चुना. उसकी मेहनत रंग लाई. अपनी कश्ती की पतवार अब उसके हाथ में थी.
रागिनी ने बॉस के केबिन में प्रवेश किया तो उसने उसे बैठने को कहा। उसके बाद अपनी सीट से उठ कर वह रागिनी के पास आकर टेबल पर बैठ गया। ऊपर से नीचे तक उसे भेदती निगाहों से देख कर बोला। "तुम्हारी ड्रेस तो बहुत सुंदर है। बहुत अच्छी फिटिंग है।" रागिनी ने बिना कुछ कहे अपना मोबाइल उठा लिया। यह देख कर बॉस ने कहा। "यह क्या कर रही हो?" "सर आप अपनी बात जारी रखिए। मैं ट्विटर पर अपडेट कर रही हूँ।" बॉस तुरंत अपनी सीट पर वापस चला गया। "वो मेरा मतसब था कि मेरी पत्नी को भी कुछ टिप्स दे दो। वह कपड़ों को लेकर परेशान...." रागिनी ने बात काटते हुए कहा। "अगर कोई काम ना हो तो मैं जाऊँ।" बॉस के कुछ कहने से पहले रागिनी कमरे से बाहर चली गई।
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