सुमन बहुत परेशान थी. माता पिता समाज सबके विरोध की परवाह किए बिना उसने अशोक का हाथ थामा था. जिस पर सबसे अधिक भरोसा कर अपना सब कुछ छोड़ा था वही दगाबाज़ निकला. उसे बीच मझधार में छोड़ कर भाग गया. अब या तो स्वयं को हालातों के भंवर में डुबो देती या फिर किनारा पाने के लिए हाथ पैर मारती. हार मानने की बजाय उसने संघर्ष का पथ चुना. उसकी मेहनत रंग लाई. अपनी कश्ती की पतवार अब उसके हाथ में थी.
सब तरफ चर्चा थी कि गीता पुलिस थाने के सामने धरने पर बैठी थी। उसने अजय के खिलाफ जो शिकायत की थी उस पर कोई कार्यवाही नहीं हुई थी। पिछले कई महीनों से गीता बहुत परेशान थी। कॉलेज आते जाते अजय उसे तंग करता था। वह उससे प्रेम करने का दावा करता था। गीता उसे समझाती थी कि उसे उसमें कोई दिलचस्पी नहीं है। वह सिर्फ पढ़ना चाहती है। लेकिन अजय हंस कर कहता कि लड़की की ना में ही उसकी हाँ होती है। गीता ने बहुत कोशिश की कि बात अजय की समझ में आ जाए कि उसकी ना का मतलब ना ही है। पर अजय नहीं समझा। पुलिस भी कछ नहीं कर रही थी। हार कर गीता यह तख्ती लेकर धरने पर बैठ गई कि 'लड़की की ना का सम्मान करो।' सभी उसकी तारीफ कर रहे थे।
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें