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श्रद्धांजलि

अपना पहला काव्य संग्रह हाथ में लिए हुए रमा अतीत के गलियारे में विचरने लगी.
ब्याह को अभी तीन महीने ही हुए थे. एक दिन वह अपनी डायरी में कुछ लिख रही थी कि तभी मुकेश ने आवाज़ दी "कहाँ हो रमा. मेरा पर्स नहीं मिल रहा है." 
लिखना छोड़ कर वह उठी और अलमारी से पर्स निकाल कर ले आई. " यह तुमने लिखा है." उसकी डायरी पढ़ते हुए मुकेश बोला.
"हाँ पर आपने मेरी डायरी क्यों पढ़ी." 
"पढ़ी तभी तो तुम्हारे इस गुण के बारे में पता चला. बहुत अच्छा लिखती हो जारी रखो."
उस दिन के बाद मुकेश उसे हर समय लिखने को प्रेरित करता. उसी ने उसकी एक कविता टाइप कर एक पत्रिका में छपने के लिए भेजी थी. उसके बाद तो रमा ने कभी पीछे मुड़ कर नहीं देखा. पहले पत्रिकाओं में छपना शुरू हुईं फिर उसने कवि सम्मेलनों में भाग लेना आरंभ किया. दिन पर दिन उसकी ख्याति बढ़ने लगी. लेकिन इस सफर में मुकेश का साथ छूट गया. दुख की इस घड़ी में मुकेश के शब्द उसे प्रेरणा देते 'हर किसी के पास यह हुनर नहीं होता. तुम लिखना मत छोड़ना.'
रमा उसकी प्रेरणा से आगे बढ़ती रही. आज उसकी मेहनत इस किताब के रूप में साकार हुई थी.
रमा ने पुस्तक पर लिखा "श्रद्धा सुमन उनके चरणों में जो मेरी प्रेरणा थे."
पुस्तक उसने मुकेश की तस्वीर के सामने रख दी.

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