नेहा स्कूल बैग को अपनी छाती से चिपकाए बिस्तर पर बैठी थी. उसे देख कर विपिन के दिल में एक टीस सी उठी. वह सुबह उसके जीवन में गहरा अंधेरा लेकर आई थी. वह उस सुबह को याद बारे करने लगा.
उनकी बेटी सोनाली के स्कूल का पहला दिन था. नई यूनीफॉर्म में सजी वह खिलखिलाती हुई पूरे घर में घूम रही थी. विपिन उसकी तस्वीरें ले रहा था.
"अब फोटो खींचना बंद करो. स्कूल बस का समय हो रहा है. इसे बिठा कर आओ." नेहा ने उसे टोंका.
नेहा को बॉय कर सोनाली विपिन का हाथ पकड़ कर बड़े उत्साह से स्कूल के लिए चल दी. उसका स्कूल बैग और वॉटर बॉटल विपिन ने पकड़ रखी थी. घर से कुछ ही दूर पर दोनों सड़क किनारे फुटपाथ पर खड़े होकर बस का इंतज़ार करने लगे. एक पपी को देख कर सोनाली हाथ छुड़ा कर उसकी तरफ भागी. विपिन उसे पकड़ने के लिए आगे बढ़ा ही था कि अचानक एक बेकाबू कार सोनाली को कुचलते हुए चली गई. देखते ही देखते उसकी दुनिया उजड़ गई. नेहा को जब यह खबर मिली वह बदहवास सी भागती वहाँ पहुँची. सोनाली का शव देख कर चीख पड़ी. पास पड़े स्कूल बैग को छाती से लगा कर रोने लगी. उस दिन आखिरी बार वह रोई थी. उसके बाद ना वह रोई और ना ही कुछ बोली. बस सोनाली के स्कूल बैग को छाती से चिपकाए रहती थी. बेटी तो गई लेकिन पत्नी पास होकर भी उसके साथ नहीं थी.
कई मनोचिकित्सकों को दिखाया पर सबका कहना था कि जब तक यह रोती नही तब तक यूं ही दुख में डूबी रहेंगी.
विपिन उठा और नेहा के पास जाकर बैठ गया. उसने प्यार से उसके माथे को चूमा किंतु वह उसी प्रकार अविचल बैठी रही. विपिन की आँखें भर आईं.
"अंकल आप खाना नहीं खाऐंगे." रिंकी ने विपिन से पूँछा. उसकी बात सुन कर विपिन अपने दुख से बाहर आया "माफ करना बेटा मैं तो भूल गया. तुम कामवाली आंटी से लेकर खाना खा लो. मैं नेहा को खिलाने के बाद खाऊँगा."
रिंकी खाना खाने चली गई. वह उसके दफ्तर के चपरासी की बेटी थी. कुछ दिन पहले अपने पिता की मृत्यु के बाद वह अनाथ हो गई थी. विपिन को उसमें सोनाली की झलक दिखाई पड़ी. उसने रिंकी को अपना लिया. उसने रिंकी का स्कूल में दाखिला करा दिया. दो दिन बाद ही उसका स्कूल आरंभ होना था.
नेहा को खाना खिलाते हुए विपिन सोंच रहा था कि कैसे नेहा को उसके दुख से बाहर लाए. उसने विचार किया कि यह स्कूल बैग ही नेहा को उसके ग़म से बाहर नहीं आने देता है. किसी तरह से यह स्कूल बैग उससे अलग करना चाहिए. एक विचार उसके मन में कौंधा.
वह रिंकी को अपने कमरे में ले आया. नेहा को संबोधित कर बोला "यह रिंकी है. अब यही हमारी बेटी है. इसे स्कूल जाना है. यह बैग इसे दे दो."
नेहा ने बैग और कस कर पकड़ लिया. विपिन ने बैग पकड़ कर खींचा "सोनाली अब नहीं आएगी. यह बैग रिंकी को दे दो."
नेहा उठ कर खड़ी हो गई और बैग अपनी तरफ खींचने लगी. विपिन ने ज़ोर लगा कर बैग छीन लिया और रिंकी को दे दिया.
"सोनाली..." नेहा ज़ोर से चीखी और फूट फूट कर रोने लगी. विपिन उसे सांत्वना देने लगा.
दो दिन बाद रिंकी नई यूनीफॉर्म पहन कर नेहा के सामने खड़ी थी. विपिन ने कहा "नेहा रिंकी स्कूल जा रही है. उसे आशीर्वाद दो."
कुछ देर तक नेहा उसे देखती रही. फिर उठ कर उसने रिंकी को गले से लगा लिया.
उनकी बेटी सोनाली के स्कूल का पहला दिन था. नई यूनीफॉर्म में सजी वह खिलखिलाती हुई पूरे घर में घूम रही थी. विपिन उसकी तस्वीरें ले रहा था.
"अब फोटो खींचना बंद करो. स्कूल बस का समय हो रहा है. इसे बिठा कर आओ." नेहा ने उसे टोंका.
नेहा को बॉय कर सोनाली विपिन का हाथ पकड़ कर बड़े उत्साह से स्कूल के लिए चल दी. उसका स्कूल बैग और वॉटर बॉटल विपिन ने पकड़ रखी थी. घर से कुछ ही दूर पर दोनों सड़क किनारे फुटपाथ पर खड़े होकर बस का इंतज़ार करने लगे. एक पपी को देख कर सोनाली हाथ छुड़ा कर उसकी तरफ भागी. विपिन उसे पकड़ने के लिए आगे बढ़ा ही था कि अचानक एक बेकाबू कार सोनाली को कुचलते हुए चली गई. देखते ही देखते उसकी दुनिया उजड़ गई. नेहा को जब यह खबर मिली वह बदहवास सी भागती वहाँ पहुँची. सोनाली का शव देख कर चीख पड़ी. पास पड़े स्कूल बैग को छाती से लगा कर रोने लगी. उस दिन आखिरी बार वह रोई थी. उसके बाद ना वह रोई और ना ही कुछ बोली. बस सोनाली के स्कूल बैग को छाती से चिपकाए रहती थी. बेटी तो गई लेकिन पत्नी पास होकर भी उसके साथ नहीं थी.
कई मनोचिकित्सकों को दिखाया पर सबका कहना था कि जब तक यह रोती नही तब तक यूं ही दुख में डूबी रहेंगी.
विपिन उठा और नेहा के पास जाकर बैठ गया. उसने प्यार से उसके माथे को चूमा किंतु वह उसी प्रकार अविचल बैठी रही. विपिन की आँखें भर आईं.
"अंकल आप खाना नहीं खाऐंगे." रिंकी ने विपिन से पूँछा. उसकी बात सुन कर विपिन अपने दुख से बाहर आया "माफ करना बेटा मैं तो भूल गया. तुम कामवाली आंटी से लेकर खाना खा लो. मैं नेहा को खिलाने के बाद खाऊँगा."
रिंकी खाना खाने चली गई. वह उसके दफ्तर के चपरासी की बेटी थी. कुछ दिन पहले अपने पिता की मृत्यु के बाद वह अनाथ हो गई थी. विपिन को उसमें सोनाली की झलक दिखाई पड़ी. उसने रिंकी को अपना लिया. उसने रिंकी का स्कूल में दाखिला करा दिया. दो दिन बाद ही उसका स्कूल आरंभ होना था.
नेहा को खाना खिलाते हुए विपिन सोंच रहा था कि कैसे नेहा को उसके दुख से बाहर लाए. उसने विचार किया कि यह स्कूल बैग ही नेहा को उसके ग़म से बाहर नहीं आने देता है. किसी तरह से यह स्कूल बैग उससे अलग करना चाहिए. एक विचार उसके मन में कौंधा.
वह रिंकी को अपने कमरे में ले आया. नेहा को संबोधित कर बोला "यह रिंकी है. अब यही हमारी बेटी है. इसे स्कूल जाना है. यह बैग इसे दे दो."
नेहा ने बैग और कस कर पकड़ लिया. विपिन ने बैग पकड़ कर खींचा "सोनाली अब नहीं आएगी. यह बैग रिंकी को दे दो."
नेहा उठ कर खड़ी हो गई और बैग अपनी तरफ खींचने लगी. विपिन ने ज़ोर लगा कर बैग छीन लिया और रिंकी को दे दिया.
"सोनाली..." नेहा ज़ोर से चीखी और फूट फूट कर रोने लगी. विपिन उसे सांत्वना देने लगा.
दो दिन बाद रिंकी नई यूनीफॉर्म पहन कर नेहा के सामने खड़ी थी. विपिन ने कहा "नेहा रिंकी स्कूल जा रही है. उसे आशीर्वाद दो."
कुछ देर तक नेहा उसे देखती रही. फिर उठ कर उसने रिंकी को गले से लगा लिया.
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