मैदान के एक कोने में उस क्रातिकारी की प्रतिमा लगी थी. जिसने एक समतापूरक सुखी देश के लिए अपने प्राण गंवाए थे.
अपने समाचार पत्र के लिए रिपोर्टिंग करने गया मैं यह सब देख रहा था. उस प्रतिमा पर मेरी नज़र पड़ी तो मैं सोंचने लगा कि यदि यह प्रतिमा जीवित हो जाए तो देश में फैले इस अनाचार को देख कर उसे कितना धक्का लगेगा.
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