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अधूरी इच्छा


जया असमंजस की स्थिति में थी. समझ नही पा रही थी कि प्रस्ताव स्वीकार करे या मना कर दे. वह जितना सोंचती थी उतना ही उलझ जाती थी. 
जया को लग रहा था कि उसका बीता हुआ कल जैसे आज उसकी बेटी का वर्तमान बन कर उसके सामने खड़ा था. वह अतीत में खो गई.
"बाउजी मुझे अभी विवाह नही करना है. मैं और पढ़ना चाहती हूँ." जया ने सहमते हुए अपने पिता से कहा. 
पिता जी ने अपनी निगाहें उस पर जमाते हुए कहा "देखो बिटिया हमें जितना पढ़ाना लिखाना था पढ़ा दिया. हमारे यहाँ लड़कियों को अधिक पढ़ाने का रिवाज़ नही है."
जया चुप हो गई. वह अभी शादी के लिए बिल्कुल भी तैयार नही थी. इसी साल तो उसने बारहवीं पास की थी. उसकी सभी सहेलियां आगे कॉलेज की पढ़ाई करने वाली थीं. उसकी भी बहुत इच्छा थी कॉलेज जाने की. उसकी इच्छा शिक्षिका बनने की थी. पर इसी बीच उसकी बुआ ने बाऊजी को यह रिश्ता सुझा दिया.
उसे उदास देख कर उसके पिता ने अपने पास बैठा कर उसे समझाया "बिटिया मेरी आर्थिक स्थिति तो तुमसे छिपी नही है. बड़ी भाग्यशाली हो जो तुम्हें ऐसा घर मिला है." उसके सर पर हाथ रख कर बोले "अब जो समय बचा है उसमें अपनी अम्मा से घर गृहस्ती संभालने के गुन सीख लो."
जया विरोध करने की हिम्मत नही जुटा पाई. घर की माली हालत उसे पता थी. पिताजी ही अकेले कमाने वाले थे. उसके अलावा उसकी छोटी बहन व दो भाइयों की जिम्मेदारी भी उन पर थी. इसलिए वह चुप रह गई. कुछ महीनों बाद उसका विवाह हो गया. 
जया के पिता ने केवल अच्छा घर ही देखा था. वर पर अधिक थ्यान नही दिया था. उसके पति के दोनों बड़े भाई अच्छी नौकरियों पर थे. लेकिन उसके पति एक छोटी सी किराने की दुकान चलाते थे. काम में उनका मन अधिक नही लगता था. विवाह के बाद स्थिति और बिगड़ गई. अब आए दिन ही वह काम पर ना जाने के बहाने ढूंढ़ते रहते थे. इसके लिए ससुराल वाले उसे ही दोष देते थे.
साल भर के भीतर ही वह एक बेटी की माँ बन गई. दायित्व बढ़ने के बावजूद भी उसके पति की सोंच में कोई अंतर नही आया. बच्ची का नाम प्रेरणा रखा गया. प्रेरणा के छोटे छोटे खर्चों के लिए भी उसे सास ससुर का मुंह ताकना पड़ता था. यह सब उसे बिल्कुल भी अच्छा नही लगता था. अक्सर वह सोंचती थी कि यदि वह सिर्फ बारहवीं पास ना होकर सही प्रकार से पढ़ी लिखी होती तो आज अपने पैरों पर खड़ी हो पाती. 
वह इस परिस्थिति से निकलने का उपाय ढूंढ़ रही थी पर अभी किस्मत में और भी दर्द लिखे थे. उसका पति अचानक गंभीर रूप से बीमार पड़ गया. कुछ दिनों तक बीमारी से जूझने के बाद वह चल बसा. जया की मुसीबतें और बढ़ गईं. वह और उसकी बेटी सभी की आंख का कांटा बन गए. घर वालों के लिए दोनों उस अनचाहे सामान की तरह थे जो किसी काम तो नही आता किंतु जगह घेरता है. यह स्थिति उसके लिए असहनीय थी. परंतु इस बार जया ने भी हालातों से लड़ाई ठान ली थी. सभी के विरोध व नाराज़गी के बावजूद उसने अपने पति की किराने की दुकान चलाने का निश्चय कर लिया. उसकी मेहनत व लगन रंग लाई और दुकान से उसे आत्मसम्मान पूर्वक जीने लायक आमदनी होने लगी.
समय अपनी गति से बढ़ने लगा. जया ने प्रेरणा को अच्छी शिक्षा दिलाने में कोई कसर नही रखी. प्रेरणा एक मेधावी छात्रा थी. पढ़ाई के साथ साथ खेल कूद में भी सदैव आगे रहती थी.
जया अपने अतीत से बाहर आकर वर्तमान के विषय में सोंचने लगी. प्रेरणा का ग्रेजुएशन पूरा हो गया था. अपने भविष्य के लिए उसने कई सुनहरे सपने देखे थे. कल ही उसने जया को अपनी एम बी ए करने की इच्छा के बारे में बताया था. उसकी बात सुन कर वह कुछ परेशान हो गई "प्रेरणा मैंने सुना है कि उसमें तो लाखों रुपये लगते हैं. कहाँ से लाऊंगी मैं इतना पैसा."
प्रेरणा ने समझाते हुए कहा "मम्मी मैने सब सोंच लिया है. यदि मैं मेहनत कर अच्छे कॉलेज में एडमिशन ले लूँ तो मुझे ॠण मिल जाएगा. नौकरी मिलने के बाद मैं उसे चुका सकती हूँ. आप तो बस मेरी कोचिंग की फीस की व्यवस्था कर दीजिए."
जया ने प्रेरणा को आश्वासन दिया कि वह उसका सपना पूरा करने में उसकी हर संभव मदद करेगी. 
लेकिन दोपहर में जया की जेठानी ने उसे फोन किया. उन्होंने बताया कि उनकी सहेली मिसेज़ वर्मा ने किसी विवाह समारोह में प्रेरणा को देखा था. वह उन्हें पसंद आई थी. अतः मिसेज़ वर्मा ने इच्छा जताई थी कि प्रेरणा का विवाह उनके पुत्र के साथ हो जाए. जया को समझाते हुए उसकी जेठानी ने कहा "घर परिवार अच्छा है. उनकी कोई मांग भी नही है. मेरे हिसाब से तो तुम्हें हाँ कर देना चाहिए."
तब से जया हर पहलू से इस रिश्ते को परख रही थी. सभी प्रकार से यह रिश्ता उसे उचित मालूम पड़ रहा था. घर परिवार उसका समझा हुआ था. वह सज्जन लोग थे. लड़का भी पढ़ा लिखा और अच्छी नौकरी में था. इस तरफ से जया आश्वस्त थी. उसकी उहापोह प्रेरणा की एम बी ए करने की इच्छा को लेकर थी. वह उसकी इच्छा पूरी तो करना चाहती थी किंतु उसके पास इतने पैसे नही थे. वह डर रही थी कि यदि प्रेरणा ने जो सोंचा है वैसा नही हुआ और उसे ॠण नही मिला तो इतने पैसे वह कहाँ से लाएगी. ऐसे में यह रिश्ता भी हाथ से चला जाएगा. 
वह इसी उलझन में थी तभी उसे लगा जैसे कि बाईस वर्ष पहले की जया उसके सामने खड़ी हो. उसने ध्यान से देखा. दरअसल यह तो उसकी शिक्षिका बनने की अधूरी इच्छा थी जिसे उसने वर्षों पहले अपने मन में दबा लिया था. परंतु इतने सालों से यह इच्छा एक टीस बन कर दिल में छुपी थी. 
जया नही चाहती थी कि प्रेरणा की इच्छा भी उसके दिल में दब कर रह जाए. उसका सारा संशय दूर हो गया. उसने फैसला कर लिया कि वह कोई जल्दबाज़ी नही करेगी. प्रेरणा को उसकी इच्छा पूरी करने के लिए पूरा मौका देगी.

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