कमला ने सारे आवश्यक कागज़ात लिए और निकलने की तैयारी करने लगी। अपने बेटे के अंतिम भुगतान लेने के लिए उसे ही कोशिश करनी थी। उसे याद है जब उसके शहीद बेटे का शव तिरंगे में लिपटा हुआ घर आया था तब सारा शहर उसे अंतिम विदाई देने उमड़ पड़ा था। सरकारी मदद का आश्वासन मिला था। उस गहरे दुख की घड़ी में उसे लगा था जैसे वह अकेली नहीं है।
लेकिन धीरे धीरे सब उसे एक घटना समझ कर भूल गए। अब तो उसे इस सच्चाई का अकेले ही सामना करना है।
उसने घर में ताला लगाया और हिम्मत कर निकल पड़ी।
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