"अगर तुम्हें यही सब करना है तो मेरे घर से निकल जाओ।"
अपने पती के यह शब्द गायत्री को पत्थर की तरह चोट पहुँचा गए। पच्चीस साल दिए थे उसने इस गृहस्ती को।
वह इसे अपना घर समझती थी। लेकिन वह गलत थी। दरअसल वह तो किराएदार थी। जब तक उसने अपने अस्तित्व का बलिदान देकर चुपचाप सब सह कर किराया चुकाया उसे रहने दिया गया। पर जब उसने अपने अस्तित्व का बलिदान देने से मना कर दिया तब उसे मकान खाली करने का नोटिस मिल गया।
अपने पती के यह शब्द गायत्री को पत्थर की तरह चोट पहुँचा गए। पच्चीस साल दिए थे उसने इस गृहस्ती को।
वह इसे अपना घर समझती थी। लेकिन वह गलत थी। दरअसल वह तो किराएदार थी। जब तक उसने अपने अस्तित्व का बलिदान देकर चुपचाप सब सह कर किराया चुकाया उसे रहने दिया गया। पर जब उसने अपने अस्तित्व का बलिदान देने से मना कर दिया तब उसे मकान खाली करने का नोटिस मिल गया।
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