सारा सामान बंध चुका था। अभय टेंपो लाने गया था। अचानक ही रागिनी का मन गीला गीला सा हो गया। वह बहुत खुश थी कि अपने मकान में जा रही थी। लेकिन इस मकान से जुड़ी यादे सैलाब की तरह मन में उमड़ने लगीं।
ब्याह के बाद अभय के साथ वह इसी मकान में आई थी। इसी छत के नीचे उनका रिश्ता उस मुकाम पर पहुँच गया था जहाँ दोनों बिना कहे एक दूसरे को समझ जाते थे। दोनों ने इस मकान को घर बनाया था।
टेंपो लेकर अभय आ गया। रागिनी की नम आँखों ने सब हाल बता दिया। उसका हाथ अपने हाथ में लेकर बोला "हम दोनों मिल कर उस मकान को भी घर बना लेंगे।"
उसकी बात सुन कर रागिनी के होंठों पर मुस्कान आ गई।
ब्याह के बाद अभय के साथ वह इसी मकान में आई थी। इसी छत के नीचे उनका रिश्ता उस मुकाम पर पहुँच गया था जहाँ दोनों बिना कहे एक दूसरे को समझ जाते थे। दोनों ने इस मकान को घर बनाया था।
टेंपो लेकर अभय आ गया। रागिनी की नम आँखों ने सब हाल बता दिया। उसका हाथ अपने हाथ में लेकर बोला "हम दोनों मिल कर उस मकान को भी घर बना लेंगे।"
उसकी बात सुन कर रागिनी के होंठों पर मुस्कान आ गई।
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