कवि उपेंद्र 'मनचला' ने मंच संभाला और अपनी वही पुरानी कविताएं सुनानी आरंभ कीं। हर कविता के बाद करतल ध्वनि से उनका स्वागत हो रहा था। जहाँ भी वह जाते अपनी इन्हीं कविताओं का पिटारा खोल देते। किंतु फिर वह हर जगह उन्हें प्रशंसा मिलती थीं। अतः उन्होंने कई दिनों से कुछ नया लिखा भी नहीं था।
उनके बाद एक नवोदित कवियत्री मंच पर आई। आरंभ में तो लोगों ने औपचारिकता वश तालियां बजाईं। बाद में जैसे जैसे कविता पाठ आगे बढ़ा लोगों में उत्साह आ गया। विचारों का नयापन व शब्दों का अचूक चुनाव सुनने योग्य था। करतल ध्वनि से संपूर्ण पंडाल हिल गया।
उपेंद्र 'मनचला' को अपना आसन डोलता लगा।
उनके बाद एक नवोदित कवियत्री मंच पर आई। आरंभ में तो लोगों ने औपचारिकता वश तालियां बजाईं। बाद में जैसे जैसे कविता पाठ आगे बढ़ा लोगों में उत्साह आ गया। विचारों का नयापन व शब्दों का अचूक चुनाव सुनने योग्य था। करतल ध्वनि से संपूर्ण पंडाल हिल गया।
उपेंद्र 'मनचला' को अपना आसन डोलता लगा।
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