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सुबह का भूला

नितिन रेस्त्रां में बैठा प्रतीक्षा कर रहा था। कुछ ही देर में प्रोफेसर दिनकर आ गए। दोनों ने एक दूसरे को देखा तो चौंक गए। प्रोफेसर की आँखों में नितिन का काला अतीत झलकने लगा। नितिन पाँच साल पीछे चला गया।
कॉलेज खत्म होने के बाद जब नितिन आगे क्या करना है सोंच रहा था तभी वह गलत संगत में पड़ गया। वह नशा करने लगा। कुछ समय तक परिवार वालों ने उसे समझाने का प्रयास किया। फिर इसे किस्मत का लिखा मान कर उसके हाल पर छोड़ दिया। एक दिन ऐसा भी आया जब नशे की तलब पूरी करने के लिए उसने पहली बार गुनाह की गली में कदम रखा। लेकिन नितिन की खुशकिस्मती थी कि जिस शख्स का बैग छीनने की उसने कोशिश की थी वह एक भला आदमी था। नितिन को गुनाह की गली में भटकता छोड़ने की जगह उसे सही मंज़िल की तरफ ले गया।
नितिन को उसके घर वालों की सहमति से ऐसी संस्था में भर्ती करा दिया जहाँ भटके हुए युवकों को सही राह दिखाई जाती थी। उस वक्त उस फरिश्ते का नाम भी नहीं पूंछा था।
आज वही प्रोफेसर दिनकर उसके सामने बैठे थे। वह उसकी तरफ देख रहे थे।
"तुम बैंक में पीओ हो।"
"जी सर दो महीने पहले ही पोस्टिंग मिली है।"
"क्या चाहते हो।"
नितिन ने नज़रें झुका लीं। जो उसके उस अतीत का गवाह रहा है उससे उसकी बेटी का हाथ कैसे मांगे।
प्रोफेसर दिनकर उसकी स्थिति समझ कर बोले "कहावत है कि यदि सुबह का भूला शाम को घर लौट आए तो उसे भूला नहीं कहते।"
नितिन की आँखों में चमक आ गई।

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