पिछले चार दिनों से अम्मा एकदम पस्त थीं। आज तो सबने मान लिया था कि चला चली की बेला बस आ ही गई है। दोनों बेटे आगे क्या करना है इस पर विचार कर रहे थे। बहुएं अम्मा के पास बैठी उस घड़ी की प्रतीक्षा कर रही थीं।
"प्राण बस अटके ही हैं। किसी भी समय चली जाएंगी।" छोटी बहू बोली।
कुछ क्षण मौन रहा। फिर बड़ी बहू बोली "बहुत गहना है इनके पास पर कभी किसी को कुछ दिया नहीं। सब दबाए बैठी थीं।"
"कितना होगा?'" छोटी बहू ने उत्सुकता दिखाई।
"दस तोले से कम सोना नहीं होगा। ठीक है अब आएगा तो हमारे ही पास।"
अम्मा की देह में हरकत हुई। आँखें खोल कर बहुओं को देखा। जैसे आँखों से घुड़की दे रही हों।
फिर सदा के लिए आँखें बंद कर लीं।
"प्राण बस अटके ही हैं। किसी भी समय चली जाएंगी।" छोटी बहू बोली।
कुछ क्षण मौन रहा। फिर बड़ी बहू बोली "बहुत गहना है इनके पास पर कभी किसी को कुछ दिया नहीं। सब दबाए बैठी थीं।"
"कितना होगा?'" छोटी बहू ने उत्सुकता दिखाई।
"दस तोले से कम सोना नहीं होगा। ठीक है अब आएगा तो हमारे ही पास।"
अम्मा की देह में हरकत हुई। आँखें खोल कर बहुओं को देखा। जैसे आँखों से घुड़की दे रही हों।
फिर सदा के लिए आँखें बंद कर लीं।
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