राकेश अपने माता पिता को मनाने के लिए कमरे में गया। उसे देखते ही माँ ने मुंह फेर लिया। पिता ने नाराज़ होकर कहा "अपने मन की ही करनी थी तो हमें क्यों उलझाए रखा इतने दिन। हम दोनों तुम्हारे लिए लड़की ढूंढ़ ही रहे थे।"
राकेश कुछ देर शांत रह कर बोला "पापा मैंने तो सब कुछ आप लोगों पर ही छोड़ दिया था। पर माफ कीजिएगा आप लोग मेरे लिए लड़की नहीं ढूंढ़ रहे थे। बल्कि मेरी दुकान लगा कर बैठे थे। हर आने वाले रिश्ते को पैसे के तराजू में तौलते थे। पिछले दो साल से रोज़ अपने ऊपर एक नया कीमत का बिल्ला लगाने में मुझे शर्म आती थी। मुझे तो बस एक ऐसी पत्नी चाहिए थी जो सुख दुख में हमारा साथ निभा सके।"
राकेश आगे बढ़ कर अपने माता पिता का हाथ पकड़ लिया।
"आप लोग यकीन रखें संध्या बहुत अच्छी बहू और पत्नी साबित होगी। हम दोनों मिल कर अपनी गृहस्ती की हर ज़रूरत पूरी कर लेंगे।"
राकेश कुछ देर शांत रह कर बोला "पापा मैंने तो सब कुछ आप लोगों पर ही छोड़ दिया था। पर माफ कीजिएगा आप लोग मेरे लिए लड़की नहीं ढूंढ़ रहे थे। बल्कि मेरी दुकान लगा कर बैठे थे। हर आने वाले रिश्ते को पैसे के तराजू में तौलते थे। पिछले दो साल से रोज़ अपने ऊपर एक नया कीमत का बिल्ला लगाने में मुझे शर्म आती थी। मुझे तो बस एक ऐसी पत्नी चाहिए थी जो सुख दुख में हमारा साथ निभा सके।"
राकेश आगे बढ़ कर अपने माता पिता का हाथ पकड़ लिया।
"आप लोग यकीन रखें संध्या बहुत अच्छी बहू और पत्नी साबित होगी। हम दोनों मिल कर अपनी गृहस्ती की हर ज़रूरत पूरी कर लेंगे।"
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