सभी औरतें कपड़े पर कढ़ाई करने में व्यस्त थीं। टांका लगाते हुए ज़ुबैदा बोली "आज तो हमें हमारी पहली कमाई मिलने वाली है। कुछ सोंचा है कि क्या करोगी।"
"मैं तो अपने पती को दूंगी।" सरला बोली।
"कमाई तुम्हारी पती को क्यों दोगी?" शाहिदा ने पूँछा।
"हर बार वह मेरे हाथ में पैसे देता था। अब मैं उसे दूंगी।" सरला की आँखों में गर्व चमक रहा था।
"मैं तो अपने और मुनिया के लिए नए कपड़े बनवाऊंगी। इस बार ईद में भी पुराने कपड़े ही पहने थे।" ज़ुबैदा ने संतोष के साथ कहा।
"वो सब ठीक है। पर बचत भी करना। आड़े बखत वही काम आती है।" उनमें सबसे बड़ी जमुना चाची ने नसीहत दी।
सबने उनकी हाँ में हाँ मिलाई। फिर उत्साह के साथ अपना काम करने लगीं।
"मैं तो अपने पती को दूंगी।" सरला बोली।
"कमाई तुम्हारी पती को क्यों दोगी?" शाहिदा ने पूँछा।
"हर बार वह मेरे हाथ में पैसे देता था। अब मैं उसे दूंगी।" सरला की आँखों में गर्व चमक रहा था।
"मैं तो अपने और मुनिया के लिए नए कपड़े बनवाऊंगी। इस बार ईद में भी पुराने कपड़े ही पहने थे।" ज़ुबैदा ने संतोष के साथ कहा।
"वो सब ठीक है। पर बचत भी करना। आड़े बखत वही काम आती है।" उनमें सबसे बड़ी जमुना चाची ने नसीहत दी।
सबने उनकी हाँ में हाँ मिलाई। फिर उत्साह के साथ अपना काम करने लगीं।
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