"बाबूजी अगरबत्ती ले लो। बहुत अच्छी खुसबू है।"
दिनेश अपने फोन पर मैसेज लिख रहा था। टालने के लिए बोला "नहीं चाहिए।"
"ले लो भगवान के सामने जलाना।"
दिनेश झुंझला कर डांटने वाला था तभी उसकी निगाह हाथ में अगरबत्ती का पैकेट पकड़े बुज़र्ग पर पड़ी। उस बुज़र्ग की आँखों में विनती का भाव देख कर उसका मन पिघल गया। उसने चार पैकेट ले लिए। पैसे देते हुए वह बोला "आप इस उम्र में भी अगरबत्ती बेचते हैं।"
"पेट उमर नहीं देखता बाबूजी। उसे तो रोटी चाहिए।"
जवाब सुनकर दिनेश अपने ही सवाल पर लज्जित हो गया।
वह बुज़र्ग व्यक्ति बोला "जब जो काम मिल जाता है कर लेते हैं। अब इस उमर में कोई नौकरी तो देता नहीं है।"
"रोज काम मिल जाता है।" दिनेश ने आगे पूँछा।
"हाँ रामजी कोई ना कोई सहारा भेज ही देते हैं। नहीं तो उनका नाम लेकर फाका कर लेते हैं।"
कहता हुआ वह बुज़र्ग आगे बढ़ गया।
दिनेश अपने फोन पर मैसेज लिख रहा था। टालने के लिए बोला "नहीं चाहिए।"
"ले लो भगवान के सामने जलाना।"
दिनेश झुंझला कर डांटने वाला था तभी उसकी निगाह हाथ में अगरबत्ती का पैकेट पकड़े बुज़र्ग पर पड़ी। उस बुज़र्ग की आँखों में विनती का भाव देख कर उसका मन पिघल गया। उसने चार पैकेट ले लिए। पैसे देते हुए वह बोला "आप इस उम्र में भी अगरबत्ती बेचते हैं।"
"पेट उमर नहीं देखता बाबूजी। उसे तो रोटी चाहिए।"
जवाब सुनकर दिनेश अपने ही सवाल पर लज्जित हो गया।
वह बुज़र्ग व्यक्ति बोला "जब जो काम मिल जाता है कर लेते हैं। अब इस उमर में कोई नौकरी तो देता नहीं है।"
"रोज काम मिल जाता है।" दिनेश ने आगे पूँछा।
"हाँ रामजी कोई ना कोई सहारा भेज ही देते हैं। नहीं तो उनका नाम लेकर फाका कर लेते हैं।"
कहता हुआ वह बुज़र्ग आगे बढ़ गया।
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