पढ़ते पढ़ते वंदना को घुटन सी महसूस होने लगी. कमरे में कोई भी खिड़की नही थी. किताब बंद कर वह बाहर आ गई. अब कुछ अच्छा महसूस कर रही थी.
तीन महीनों से वह यहाँ पीजी के तौर पर रह रही थी. मुर्गी के दरबे जैसे छोटे छोटे कमरों में उसके जैसी कई लड़कियां रह रही थीं. खाना भी अक्सर बेस्वाद ही मिलता था. परंतु यह शहर अपनी आई ए एस कोचिंग के लिए प्रसिद्ध था. अधिकांश लड़कियाँ इसी वजह से यहाँ आई थीं. वंदना भी उनमें से एक थी.
उसे अपने माता पिता की याद आ गई. उसका सपना पूरा करने के लिए उन्होंने उसे तकलीफें उठा कर यहाँ भेजा था.
अपना उद्देश्य याद आते ही वह सब कष्ट भूल कर पढ़ने के लिए भीतर चली गई.
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