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ऑक्सीजन


रवि पेशे से वकील था किंतु लेखन से उसे विशेष लगाव था. इंटरनेट पर अक्सर वह लिखा करता था. इस समय वह वायु प्रदूषण पर एक लेख लिख रहा था. लेख लिखते समय जो तथ्य उसके सामने थे उन्हें देख कर वह सोंचने लगा कि यदि यही हाल रहा तो कुछ सालों बाद सांस लेने के लिए ऑक्सीजन सिलेंडरों में मिलेगी. वह लिखने में व्यस्त था तभी सिन्हा जी आ गए. वह पुराने परिचितों में थे. रवि उन्हें चाचाजी कह कर बुलाता था. कुसलक्षेम पूंछने के बाद सिन्हा जी बोले "बेटा तुमसे मदद चाहिए. मुझे मेरा मकान बेंचना है. कोई ग्राहक बताओ. यह बात मैं सबसे नही कहना चाहता इसलिए तुम्हारी मदद ले रहा हूँ."
"पर मकान क्यों बेचना चाहते हैं. कोई आर्थिक संकट है क्या." रवि ने पूंछा.
"अब तुमसे क्या पर्दा. दरअसल मुझे मेरे बेटे नवीन पर अब भरोसा नही रहा. उसका और बहू का जो व्यवहार है उससे लगता है कि वह दोनों कुछ भी कर सकते है." सिन्हाजी ने अपनी व्यथा बताई. वह आगे बोले "अब जमा पूंजी इतनी है नही. मकान बेंच कर जो मिलेगा उससे अपने लिए छोटा मोटा कोई आसरा ढूंढ़ लूंगा. अब उनके साथ नही रह सकता."
रवि ने मदद का आश्वासन दिया. कुछ देर बैठ कर सिन्हाजी चले गए.
अभी आधा घंटा ही बीता होगा कि नवीन आ गया. मुद्दे की बात करते हुए बोला "पापा मकान बेंचना चाहते हैं. तुम तो वकील हो कोई तरकीब बताओ कि वह ऐसा ना कर सकें." फिर स्वयं ही उपाय बताते हुए बोला "क्या यह आधार ठीक रहेगा कि बताया जाए कि उनका मानसिक संतुलन ठीक नही. वैसे भी आज कल उनका चाल चलन कुछ ठीक नही है."
उसकी बात सुन कर रवि सोंचने लगा 'अब इन बीमार रिश्तों के लिए ऑक्सीजन कहाँ से लाई जाए.'

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