बसंत अपने मकान की छत पर बैठा मदद का इंतज़ार कर रहा था. बाढ़ की वजह से घर
में घुटनों तक पानी भर गया था. भूख से पेट की आंतें कुलबुला रही थीं.
छत पर बैठे हुए उसे याद आ रहा था कि ना जाने कितनी बार उसने खाने में कमी
निकाल कर बिना पूरा खाना खाए ही थाली छोड़ दी थी. उसे वह सारी थालियां अपने सामने
घूमते नज़र आ रही थीं.
तभी आसमान में उड़ते हैलीकॉप्टर से खाने के पैकेट गिराए गए. एक उसकी छत पर भी
गिरा. उसने झपट कर पैकेट उठाया और बिना किसी की परवाह किए अकेले खाने लगा.
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