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गेंद


रजत दफ्तर से लौटा तो घर का माहौल तनावपूर्ण लगा. माँ अपने कमरे में थीं तथा पत्नी बेडरूम में लेटी थी. आज बहुत थका हुआ था. अतः उसने मामले को ना छेड़ना ही उचित समझा. चुपचाप कबर्ड से कपड़े निकाले और फ्रेश होने चला गया. फ्रेश होकर उसने अपने लिए चाय बनाई और लिविंग रुम में बैठ कर पीने लगा.
अक्सर ही सास बहू में किसी ना किसी बात को लेकर झगड़ा होता था. वह जानता था कि झगड़े में दोनों की ही गलती होती थी. किंतु वह दोनों के इस झगड़े के बीच बिना किसी वजह के पिस जाता था. उसने दोनों के बीच सुलह करवाने की बहुत कोशिश की किंतु उसके सारे प्रयास अब तक विफल रहे. पत्नी को समझाने जाता तो वह उलाहना देती कि अभी तक माँ के आंचल से बंधे हुए हो. उन्हीं का पक्ष लेते हो ऐसा था तो शादी क्यों की थी. माँ से कुछ कहता तो वह आंसू बहाने लगती कि  बेटा तो पूरा जोरू का गुलाम हो गया है. माँ को छोड़ बीवी का पल्ला थाम लिया है. उसी के इशारों पर नाचता है.
आए दिन के इन झगड़ों से तंग आ गया था. दिन भर दफ्तर में खटने के बाद घर का तनाव पूर्ण माहौल बर्दाश्त नही होता था. लेकिन अपने अहम के चलते दोनों में से कोई उसकी पीड़ा समझने को तैयार नही था.
अकेले बैठे हुए वह बोर होने लगा. उसने टी वी खोल लिया. स्पोर्ट्स चैनल पर महिला टेनिस का मैच चल रहा था. दोनों महिला खिलाड़ी अपना वर्चस्व दिखाने के लिए गेंद पर तेजं प्रहार कर रही थीं. रैकेट की मार से कभी इधर तो कभी उधर होती गेंद में उसे अपना चेहरा नजर आने लगा.

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