भुल्लर साहब का मन भारी था. वह बंगले के गार्डन की बेंच पर बैठ गए. पिछले तीन साल से वह यहाँ रह रहे थे. इतने दिनों में पहली बार वह बेटे बहू से मिलने गए थे. उनकी शादी की सालगिरह थी. अतः उन्होंने योजना बनाई थी कि दो दिन वह उनके साथ बिताएंगे. परंतु जब वह वहाँ पहुँचे तो पाया कि वो दोनों कहीं बाहर जाने की तैयारी में थे.
बेटे ने पांव छूते हुए कहा "आना था तो पहले से बता देते. हम लोग तो बाहर जा रहे हैं."
"इस साल एनवर्सरी बाहर मनाने का प्लान है." बहू ने सफाई दी.
"आए हैं तो कुछ देर बैठिए." बेटे ने कहा. एक आवश्यक फोन करने के बहाने वह बाहर चला गया.
बहू ने नौकरानी को चाय नाश्ता लाने का आदेश दिया. "आप चाय पीजिए तब तक मैं भी कुछ पैकिंग कर लूँ."
भुल्लर साहब अकेले रह गए. हॉल में रखे कीमती सामान के बीच वह असहजता महसूस करने लगे. बिना किसी से कुछ कहे वह वहाँ से चले आए. दिन भर इधर उधर भटकने के बाद सांझा सदन वापस आ गए.
दरवाज़ा खुला और उनके साथी बाहर आते दिखाई दिए. सभी रात की सैर के लिए निकल रहे थे.
"अरे भुल्लर" जैन साहब बोले और सभी बेंच की तरफ भागे. वहाँ पहुँच कर खान साहब ने पूंछा "क्या हुआ."
भुल्लर साहब ने उदास नज़रों से उनकी तरफ देखा. कोई कुछ नही बोला. गुप्ता जी उनके बगल में बैठ गए और उनके कंधे पर अपना हाथ रख दिया. भुल्लर साहब भावुक हो गए और रोने लगे. सभी उन्हें सांत्वना दे रहे थे. अपनेपन की आँच से मन का सारा अवसाद पिघल गया. अब वह हल्का महसूस कर रहे थे. मुस्कुरा कर बोले "मुझे यूं ही घेरे रहोगे या घर के भीतर भी ले चलोगे. मुझे भूख लगी है."
"हाँ भीतर चल कर खाना खा लो. फिर हम सब आईसक्रीम खाने चलेंगे." कहते हुए जैन साहब घर के अंदर चल दिए. सब उनके पीछे हो लिए.
बेटे ने पांव छूते हुए कहा "आना था तो पहले से बता देते. हम लोग तो बाहर जा रहे हैं."
"इस साल एनवर्सरी बाहर मनाने का प्लान है." बहू ने सफाई दी.
"आए हैं तो कुछ देर बैठिए." बेटे ने कहा. एक आवश्यक फोन करने के बहाने वह बाहर चला गया.
बहू ने नौकरानी को चाय नाश्ता लाने का आदेश दिया. "आप चाय पीजिए तब तक मैं भी कुछ पैकिंग कर लूँ."
भुल्लर साहब अकेले रह गए. हॉल में रखे कीमती सामान के बीच वह असहजता महसूस करने लगे. बिना किसी से कुछ कहे वह वहाँ से चले आए. दिन भर इधर उधर भटकने के बाद सांझा सदन वापस आ गए.
दरवाज़ा खुला और उनके साथी बाहर आते दिखाई दिए. सभी रात की सैर के लिए निकल रहे थे.
"अरे भुल्लर" जैन साहब बोले और सभी बेंच की तरफ भागे. वहाँ पहुँच कर खान साहब ने पूंछा "क्या हुआ."
भुल्लर साहब ने उदास नज़रों से उनकी तरफ देखा. कोई कुछ नही बोला. गुप्ता जी उनके बगल में बैठ गए और उनके कंधे पर अपना हाथ रख दिया. भुल्लर साहब भावुक हो गए और रोने लगे. सभी उन्हें सांत्वना दे रहे थे. अपनेपन की आँच से मन का सारा अवसाद पिघल गया. अब वह हल्का महसूस कर रहे थे. मुस्कुरा कर बोले "मुझे यूं ही घेरे रहोगे या घर के भीतर भी ले चलोगे. मुझे भूख लगी है."
"हाँ भीतर चल कर खाना खा लो. फिर हम सब आईसक्रीम खाने चलेंगे." कहते हुए जैन साहब घर के अंदर चल दिए. सब उनके पीछे हो लिए.
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