दीप्ती लेटे हुए सोंच रही थी. पहली बार ऐसा हुआ था कि सुधीर अपनी संतुष्टि किए बिना चुप चाप कमरे से चला गया. उसे उसकी किसी तकलीफ से कोई मतलब नही रहता था. दीप्ती केवल उसके मन बहलाव का साधन थी. आज उसने सर दर्द की शिकायत की तो बिना कुछ कहे निकल गया. वह सोंचने लगी लगता है कोई और मछली फंसा ली है उसने.
सुथीर पर भरोसा करना उसके जीवन की सबसे बड़ी भूल थी. वह उसके मरहूम पति का बिज़नेस पार्टनर था. पति की अकस्मात मृत्यु से वह बहुत दुखी थी. समझ नही पा रही थी कि कैसे वह अपनी छोटी सी बच्ची को अकेले पालेगी. इन दिनों में सुधीर उसके नज़दीक आया. उन पलों में उसने उसे यकीन दिलाया कि वह उसकी और उसकी बच्ची को कोई तकलीफ नही होने देगा. दीप्ती ने उस पर यकीन कर लिया. दोनों ने शादी कर ली.
जल्द ही दीप्ती समझ गई कि यह महज़ एक जाल था. अब उसके पति के हिस्से पर भी उसका अधिकार हो गया था. दीप्ती उसके हाथ का खिलौना बन कर रह गई. अपनी बच्ची के भविष्य के बारे में सोंच कर वह पिछले आठ साल से सब कुछ चुप चाप सह रही थी.
अचानक दीप्ती को अपनी बच्ची की चीख सुनाई दी. 'सुधीर' उसके मन में यह खयाल आते ही वह तेज़ी से अपनी बेटी के कमरे की तरफ भागी. रास्ते में डाइनिंग टेबल से उसने फलों को काटने का चाकू उठा लिया. शेरनी की तरह भागती हुई वह कमरे में पहँची. वहाँ का नज़ारा देख उसकी नसों में लावा दौड़ने लगा. बिजली की गति से वह सुधीर पर झपटी.
अगले दिन अखबार मे सुर्खियां थीं. 'पहाड़ों पर शांत बर्फ ने ढाया तूफान'
'पत्नी ने की पति की हत्या'
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