फिर हमेशा की तरह सरला के पति ने उसे पीटा गालियां दी. उसने चुपचाप सब कुछ सह लिया. वह इस सबको अपनी नियति मान चुकी थी. सुबह और शाम के होने जैसी एक सामान्य घटना की तरह ही वह इसे भी स्वीकार कर चुकी थी.
उसे पीटने के बाद उसका पति जाकर सो गया. वह भी उठी और जाकर अपने सात साल के बेटे के बगल में लेट गई. कुछ क्षणों के बाद उसका बेटा उससे लिपट गया. उसके आंसू पोंछते हुए बोला "मम्मी, पापा तुम्हें बिना बात के पीटते हैं. तुम कभी कुछ कहती क्यों नही."
उसके बेटे के इस मासूम सवाल ने उसे झझकोर कर रख दिया. वह सोंचने लगी कि क्यों उसने इस अपमान को अपना भाग्य मान लिया है. जिंदा होते हुए भी अपने आत्मसम्मान को मार दिया है.
मन में एक निश्चय कर उसने अपने बेटे का माथा चूम कर कहा "अगली बार मैं चुपचाप नही सहूँगी."
उसे पीटने के बाद उसका पति जाकर सो गया. वह भी उठी और जाकर अपने सात साल के बेटे के बगल में लेट गई. कुछ क्षणों के बाद उसका बेटा उससे लिपट गया. उसके आंसू पोंछते हुए बोला "मम्मी, पापा तुम्हें बिना बात के पीटते हैं. तुम कभी कुछ कहती क्यों नही."
उसके बेटे के इस मासूम सवाल ने उसे झझकोर कर रख दिया. वह सोंचने लगी कि क्यों उसने इस अपमान को अपना भाग्य मान लिया है. जिंदा होते हुए भी अपने आत्मसम्मान को मार दिया है.
मन में एक निश्चय कर उसने अपने बेटे का माथा चूम कर कहा "अगली बार मैं चुपचाप नही सहूँगी."
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