स्नेहा अपना चयन हो जाने के कारण बहुत प्रसन्न थी. अब वह शोभना जी की स्वयंसेवी संस्था के लिए काम करेगी. शोभना जी उसका आदर्श थीं. वह उनके विचारों से बहुत प्रभावित थी. उन्हीं के कारण उसने सोशल वर्क में मास्टर किया था.
स्नेहा का काम उन संभावित लोगों से संपर्क करना था जो उनकी संस्था को दान दे सकते थे. संस्था मुख्यतया बच्चों तथा महिलाओं के अधिकारों के लिए काम करती थी. स्नेहा लोगों से मिल कर उन्हें इस कार्य में सहयोग देने के लिए प्रेरित करती थी.
एक बार किसी काम के सिलसिले में स्नेहा को शोभना जी के घर जाना पड़ा. वह बैठक में बैठी उनका इंतजार कर रही थी. वहाँ की सुरुचिपूर्ण सजावट देख कर वह बहुत प्रभावित थी. तभी बारह तेरह वर्ष की एक लड़की ट्रे में पानी लेकर आई. उसे देख स्नेहा को आश्चर्य हुआ. शोभना जी जैसी समाज सेविका के घर यह बच्ची काम कैसे कर सकती है. पानी पीकर उसने पूंछा "क्या तुम यहाँ काम करती हो."
बच्ची ने धीरे से हाँ कहा और गिलास लेकर जाने लगी. किंतु जाने कैसे उसका संतुलन बिगड़ गया और वह लड़खड़ा कर गिर गई. काँच का गिलास टूट गया. ठीक उसी समय शोभना जी ने बैठक में प्रवेश किया. बजाय उसे सांत्वना देने के वह उसे डांटने लगीं. स्नेहा दंग रह गई. एक पल में जो सच था वह छलावा बन गया था.
स्नेहा का काम उन संभावित लोगों से संपर्क करना था जो उनकी संस्था को दान दे सकते थे. संस्था मुख्यतया बच्चों तथा महिलाओं के अधिकारों के लिए काम करती थी. स्नेहा लोगों से मिल कर उन्हें इस कार्य में सहयोग देने के लिए प्रेरित करती थी.
एक बार किसी काम के सिलसिले में स्नेहा को शोभना जी के घर जाना पड़ा. वह बैठक में बैठी उनका इंतजार कर रही थी. वहाँ की सुरुचिपूर्ण सजावट देख कर वह बहुत प्रभावित थी. तभी बारह तेरह वर्ष की एक लड़की ट्रे में पानी लेकर आई. उसे देख स्नेहा को आश्चर्य हुआ. शोभना जी जैसी समाज सेविका के घर यह बच्ची काम कैसे कर सकती है. पानी पीकर उसने पूंछा "क्या तुम यहाँ काम करती हो."
बच्ची ने धीरे से हाँ कहा और गिलास लेकर जाने लगी. किंतु जाने कैसे उसका संतुलन बिगड़ गया और वह लड़खड़ा कर गिर गई. काँच का गिलास टूट गया. ठीक उसी समय शोभना जी ने बैठक में प्रवेश किया. बजाय उसे सांत्वना देने के वह उसे डांटने लगीं. स्नेहा दंग रह गई. एक पल में जो सच था वह छलावा बन गया था.
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