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हकीकत


गाँव के चौपाल पर एक नाटक खेला जा रहा था.
चारपाई पर पूरे ठसक के साथ बैठी  ताई अपने पोतों का गुणगान कर रही थीं "मेरे चार पोते हैं. सब हट्टे कट्टे. मैने तो हर कोशिश की कि छोरियां पैदा ना हों. अब मैं चारों का ब्याह करूँगी ताकि वंश आगे बढ़ सके."
पास ही मोढ़े पर बैठी पड़़ोसन बोली "कैसे करोगी उनका ब्याह ताई. अब छोरियां बहुत कम बची हैं. कई छोरे कुंवारे बैठे हैं."
ताई डर गईं "ऐसा कैसे हो सकता है."
"क्यों नही हो सकता ताई. जो कोशिश तुमने की वही औरों ने भी की." पड़ोसन ने मुस्कुरा कर कहा.
ताई सोंच में पड़ गई. पड़ोसन ने बात आगे बढ़ाई "अब परेशान होने से क्या ताई. कुदरत से खेलने का तो यही नतीजा होता है. कुदरत ने तो छोरा छोरी दोनों को बनाया है."
नाटक समाप्त हो गया. नीली जींस और सफेद टी शर्ट पहने कुछ लड़के लड़की सामने आए और हाथ जोड़ कर दर्शकों का धन्यवाद किया.
कॉलेज के ये स्टूडेंट्स फोकट का तमाशा दिखा कर लोगों को बहुमूल्य संदेश देते थे.

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