शंकर अपने गंतव्य पर पहुँच गया था. कुछ तंग गलियों को पार कर वह एक मकान के पास जाकर रुका. यही बाबा जी का डेरा था. बाहर थोड़ी सी खुली जगह में बहुत से लोग जमा थे. उसने नियत राशि जमा करके अपना नंबर ले लिया.
पिछले कई साल से समस्याओं ने उसके घर डेरा जमा लिया था. पहले जिस फैक्टरी में वह काम करता था वह बंद हो गई. अपनी जमा पूंजी लगा कर व्यापार आरंभ किया. कुछ दिन सब सही चला फिर उसमें भी नुकसान झेलना पड़ा. व्यापार बंद कर फिर से नौकरी कर ली. वहाँ सब सही था तो अब पत्नी बीमार पड़ गई. एक के बाद एक आने वाली मुसीबतों से वह तंग आ गया था. ईश्वर पर से उसका भरोसा उठ गया था.
परसों उसकी मुलाकात अपने पुराने दोस्त से हो गई. उसकी कठिनाई सुन कर उसके मित्र ने उसे 'बताशा' बाबा के बारे में बताया. बाबा व्यक्ति की बात सुन कर कुछ क्षण आंखें बंद कर मंत्र जाप करते थे फिर व्यक्ति को चीनी के बने बताशे प्रसाद रूप में देते थे. उन्हें खा कर समस्या का समाधान हो जाता था. इस सब के लिए बाबा एक सौ एक रुपये की दक्षिणा लेते थे. कई लोगों को फायदा पहुँचा था. अतः शंकर के मित्र ने उससे भी बाबा के पास जाने को कहा.
उसकी बात पर शंकर ने कोई प्रतिक्रिया नही दी. घर आकर उसने यह बात अपनी पत्नी को बताई. उसकी पत्नी ने भी उससे एक बार जा कर देखने को कहा. मुसीबत में फंसे इंसान को उससे निकलने की जो भी राह दिखती है उस पर चल पड़ता है. शंकर जाने को राज़ी हो गया.
अभी बाबा जी अपनी गद्दी पर नही बैठे थे. सभी उनके आने की राह देख रहे थे. शंकर ने चारों तरफ नज़र दौड़ाई. सभी उदास और परेशान थे. हर आयु तथा वर्ग के लोग मौजूद थे. गरीब अमीर मध्यवर्ग सभी सभी किसी ना किसी समस्या से जूझ रहे थे. अब और कुछ हो ना हो उसे एक बात समझ आ गई थी कि मुसीबतज़दा अकेला वही नही है.
पिछले कई साल से समस्याओं ने उसके घर डेरा जमा लिया था. पहले जिस फैक्टरी में वह काम करता था वह बंद हो गई. अपनी जमा पूंजी लगा कर व्यापार आरंभ किया. कुछ दिन सब सही चला फिर उसमें भी नुकसान झेलना पड़ा. व्यापार बंद कर फिर से नौकरी कर ली. वहाँ सब सही था तो अब पत्नी बीमार पड़ गई. एक के बाद एक आने वाली मुसीबतों से वह तंग आ गया था. ईश्वर पर से उसका भरोसा उठ गया था.
परसों उसकी मुलाकात अपने पुराने दोस्त से हो गई. उसकी कठिनाई सुन कर उसके मित्र ने उसे 'बताशा' बाबा के बारे में बताया. बाबा व्यक्ति की बात सुन कर कुछ क्षण आंखें बंद कर मंत्र जाप करते थे फिर व्यक्ति को चीनी के बने बताशे प्रसाद रूप में देते थे. उन्हें खा कर समस्या का समाधान हो जाता था. इस सब के लिए बाबा एक सौ एक रुपये की दक्षिणा लेते थे. कई लोगों को फायदा पहुँचा था. अतः शंकर के मित्र ने उससे भी बाबा के पास जाने को कहा.
उसकी बात पर शंकर ने कोई प्रतिक्रिया नही दी. घर आकर उसने यह बात अपनी पत्नी को बताई. उसकी पत्नी ने भी उससे एक बार जा कर देखने को कहा. मुसीबत में फंसे इंसान को उससे निकलने की जो भी राह दिखती है उस पर चल पड़ता है. शंकर जाने को राज़ी हो गया.
अभी बाबा जी अपनी गद्दी पर नही बैठे थे. सभी उनके आने की राह देख रहे थे. शंकर ने चारों तरफ नज़र दौड़ाई. सभी उदास और परेशान थे. हर आयु तथा वर्ग के लोग मौजूद थे. गरीब अमीर मध्यवर्ग सभी सभी किसी ना किसी समस्या से जूझ रहे थे. अब और कुछ हो ना हो उसे एक बात समझ आ गई थी कि मुसीबतज़दा अकेला वही नही है.
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