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कोशिश


राजेंद्र ने अपना आईपैड उठाया और पूरा पैराग्राफ फिर से पढ़ा. बात अभी भी नही बनी थी. उन्होंने पूरा पैराग्राफ डिलीट कर दिया.
वह सुबह से प्रयास कर रहे थे कुछ लिखने का. लेकिन जो भी लिखते उससे संतुष्ट नही हो पा रहे थे. आज कितने सालों के बाद फिर से लिखना आरंभ किया था. पीछे छूट गए अपने शौक को पुनः जीवित करने की कोशिश कर रहे थे. 
किशोरावस्था से ही अपने विचारों को एक डायरी में लिखने की आदत थी उन्हें. फिर वही विचार और व्यवस्थित होकर कविता. कहानी और लेख की शक्ल में स्कूल व कॉलेज की मैगज़ीन में छपने लगे. साहित्य से लगाव था उन्हें. खाली वक्त में कोई पुस्तक पढ़ना अथवा अपनी डायरी लिखना उन्हें घूमने फिरने से ज़्यादा अच्छा लगता था. एक समय था जब उनके मन में लेखक बनने का विचार भी आया था. अपनी यह ख़्वाहिश उन्होंने अपने पिता को बताई तो उनकी प्रतिक्रिया उत्साह बढ़ाने वाली नही थी "देखो बेटा यह सब शौक तक ठीक है लेकिन ज़िदगी जीने के लिए पैसों की ज़रूरत होती है. लेखक को तारीफ के अलावा क्या मिलता है." 
उन्होंने घर में पैसों की तंगी देखी थी. उनके भविष्य के लिए उनके माता पिता अपनी छोटी छोटी इच्छाओं के लिए भी मन मार लेते थे. माता पिता की सारी उम्मीदें उन पर ही टिकी थीं. लेखक बनने की इच्छा को दबा कर वह चार्टेड एकाउंटेंट बनने की तैयारी करने लगे.
इतने साल दूसरों की बैलेंसशीट का मिलान करते रहे. शुष्क आंकड़ों को पढ़ते पढ़ते यह भूल ही गए कि कभी साहित्य से भी उनका नाता था. दो साल पहले रिटायर होने के बाद उन्होंने फिर से साहित्य से अपना नाता जोड़ा. जब भी मौका मिलता कोई पुस्तक खरीद लेते. उनका घर एक छोटा सा पुस्तकालय बन गया था. अब अधिकांश समय स्टडी में पुस्तकों के साथ बीतता था. पत्नी अक्सर ताना देती थी "पहले ऑफिस था अब स्टडी रूम. मेरे लिए कभी वक्त होगा आपके पास." ऐसे में रूठी पत्नी को मनाने के लिए काव्य का सहारा लेते थे. 
अब मन में अक्सर यह विचार आता था कि फिर से कुछ लिखें. आज इंटरनेट पर कई ऐसे मंच थे जिनके द्वारा अपनी प्रतिभा को प्रदर्शित किया जा सकता था. उन्होंने मन बना लिया कि वह लिखेंगे. परंतु सुबह से इतनी कोशिशें करने के बावजूद भी कुछ ढंग का नही लिख पाए. 
पत्नी कई बार स्टडी में झांक कर गई थी. वह समझ रहे थे कि वह उनके इस प्रकार स्टडी में घुसे रहने से ऊब गई थी. सुबह से बैठे बैठे बोर तो वह भी हो गए थे. अतः लिखने का इरादा कुछ देर के लिए त्याग कर वह बाहर आ गए. पत्नी टैरेस में बनाए अपने छोटे से बागीचे में पौधों की देख भाल कर रही थी. उन्हें देख कर बोली "लगता है किताबें आप से बोर हो गईं."
"बोर तो मैं हो गया. इसलिए उसके पास आ गया जो इसे दूर कर सके."  
पत्नी ने तिरछी नज़रों से उन्हें देखा. फिर मुस्कुरा दी. 
"चलो कहीं बाहर चलते हैं." राजेन्द्र ने प्रस्ताव रखा. 
दोनों बाहर घूमने के लिए चले गए. डिनर बाहर कर के देर रात लौटे. लेटे हुए राजेंद्र बहुत अच्छा महसूस कर रहे थे. उनके दिमाग में अचानक ही जैसे विचारों का सैलाब आ गया था. लेटे हुए वह उन्हें एक लड़ी में पिरोने लगे. उन्हें लगा जो चाहते थे वह हो गया. वह धीरे से उठे. पत्नी गहरी नींद में थी. दबे पांव वह बेडरूम से बाहर निकले. स्टडी में पहुँच कर उन्होंने अपना आईपैड उठाया और लिखने लगे.

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