कोई नही समझ पा रहा था कि क्यों लंदन में अपना सब कुछ समेट कर रमेश भारत लौट रहा था. वह पिछले पच्चीस वर्ष से वहाँ था. पूरी तरह से व्यवस्थित हो चुका था. वह अकेला था व अपने हिसाब से जीवन जी रहा था. किसी को भी अंदाज नही था कि वह ऐसा करेगा.
रमेश के पिता अक्सर उसे उनके संघर्षों के विषय में बताते थे जो उन्होंने स्वयं की एक पहचान बनाने के लिए किए थे. वह समाज के पिछड़े व शोषित वर्ग से संबंध रखते थे. उनके पिता खेतों में मजदूरी करते थे. फिर भी उन्होंने आर्थिक कठिनाइयों तथा सामाजिक चुनौतियों का सामना कर अपने पुत्र को पढ़ाया. अपनी मेहनत के बल पर वह आई ए एस अधिकारी बने.
आर्थिक कठिनाई तो नही हुई किंतु रमेश को भी अपनी सामाजिक स्थिति के कारण भेदभाव झेलना पड़ा. इन सबसे बचने के लिए वह लंदन चला गया. वहाँ अपना एक स्थान बनाया. सब ठीक था किंतु विकास के पथ पर बढ़ते अपने मुल्क से उसे आज भी ऐसी खबरें मिलती जो उसके समाज की सोचनीय दशा को प्रदर्शित करती थीं. यह सब सुन उसके मन में पीड़ा होती थी. वह इस विषय में कुछ करना चाहता था.
एक दिन उसने भारत लौटने का निश्चय कर लिया. अपने समाज के लिए वह भी उसी प्रकार संघर्ष करेगा जैसे उसके बाबा और पिता ने किया था.
रमेश के पिता अक्सर उसे उनके संघर्षों के विषय में बताते थे जो उन्होंने स्वयं की एक पहचान बनाने के लिए किए थे. वह समाज के पिछड़े व शोषित वर्ग से संबंध रखते थे. उनके पिता खेतों में मजदूरी करते थे. फिर भी उन्होंने आर्थिक कठिनाइयों तथा सामाजिक चुनौतियों का सामना कर अपने पुत्र को पढ़ाया. अपनी मेहनत के बल पर वह आई ए एस अधिकारी बने.
आर्थिक कठिनाई तो नही हुई किंतु रमेश को भी अपनी सामाजिक स्थिति के कारण भेदभाव झेलना पड़ा. इन सबसे बचने के लिए वह लंदन चला गया. वहाँ अपना एक स्थान बनाया. सब ठीक था किंतु विकास के पथ पर बढ़ते अपने मुल्क से उसे आज भी ऐसी खबरें मिलती जो उसके समाज की सोचनीय दशा को प्रदर्शित करती थीं. यह सब सुन उसके मन में पीड़ा होती थी. वह इस विषय में कुछ करना चाहता था.
एक दिन उसने भारत लौटने का निश्चय कर लिया. अपने समाज के लिए वह भी उसी प्रकार संघर्ष करेगा जैसे उसके बाबा और पिता ने किया था.
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