प्राचीन समय में एक राज्य था. यहाँ की परंपरा के अननसार प्रजापालक के पद पर बैठने वाले का चुनाव प्रजा अपने बीच से खड़े प्रत्याशियों में से करती थी.
इस बार प्रजा ने प्रियदर्शी नामक व्यक्ति का चुनाव किया था. प्रियदर्शी की छवी प्रजा के हितैशी के रूप में थी. पद पर बैठने के बाद प्रियदर्शी ने प्रजा के हित में काम करना आरंभ कर दिया. सभी उससे बहुत खुश थे. किंतु कुछ समय पश्चीत स्थितियां बदलने लगीं. पहले प्रजा आसानी से प्रियदर्शी से मिल पाती थी किंतु अब उसका विशेष सचिव जिसे अनुमति देता वही उससे मिल पाता था. अब उसके कई फैसले भी आम जन के हित में नही थे. लोगों की आर्थिक स्थिति खराब हो रही थी जबकी प्रियदर्शी की व्यक्तिगत संपत्ति बढ़ रही थी.
प्रजा में एक युवक था समदर्शी. उसने इस सब का विरोध करना आरंभ कर दिया. धीरे धीरे उसे प्रजा का समर्थन मिलने लगा. शीघ्र ही वह प्रजा का प्रिय नेता बन गया.
प्रियदर्शी का कार्यकाल खत्म होने पर प्रजा ने भारी बहुमत से समदर्शी का चुनाव किया.
समदर्शी ने जोर शोर से काम शुरू किया. अब सबकी आशाएं उस पर थीं. किंतु कुछ ही समय में स्थितियां पहले जैसी हो गईं. कई मामलों में तो समदर्शी ने प्रियदर्शी को भी पछाड़ दिया.
निराश प्रजा एक ज्ञानी व्यक्ति के पास गई और उनसे कारण पूंछा. वह मुस्कुरा कर बोले "दोष इन लोगों का नही उस कुर्सी का है जिस पर यह बैठते हैं. उस पर सत्ता मद, लोभ, स्वार्थ की माया है.
इस बार प्रजा ने प्रियदर्शी नामक व्यक्ति का चुनाव किया था. प्रियदर्शी की छवी प्रजा के हितैशी के रूप में थी. पद पर बैठने के बाद प्रियदर्शी ने प्रजा के हित में काम करना आरंभ कर दिया. सभी उससे बहुत खुश थे. किंतु कुछ समय पश्चीत स्थितियां बदलने लगीं. पहले प्रजा आसानी से प्रियदर्शी से मिल पाती थी किंतु अब उसका विशेष सचिव जिसे अनुमति देता वही उससे मिल पाता था. अब उसके कई फैसले भी आम जन के हित में नही थे. लोगों की आर्थिक स्थिति खराब हो रही थी जबकी प्रियदर्शी की व्यक्तिगत संपत्ति बढ़ रही थी.
प्रजा में एक युवक था समदर्शी. उसने इस सब का विरोध करना आरंभ कर दिया. धीरे धीरे उसे प्रजा का समर्थन मिलने लगा. शीघ्र ही वह प्रजा का प्रिय नेता बन गया.
प्रियदर्शी का कार्यकाल खत्म होने पर प्रजा ने भारी बहुमत से समदर्शी का चुनाव किया.
समदर्शी ने जोर शोर से काम शुरू किया. अब सबकी आशाएं उस पर थीं. किंतु कुछ ही समय में स्थितियां पहले जैसी हो गईं. कई मामलों में तो समदर्शी ने प्रियदर्शी को भी पछाड़ दिया.
निराश प्रजा एक ज्ञानी व्यक्ति के पास गई और उनसे कारण पूंछा. वह मुस्कुरा कर बोले "दोष इन लोगों का नही उस कुर्सी का है जिस पर यह बैठते हैं. उस पर सत्ता मद, लोभ, स्वार्थ की माया है.
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