नीरज की नियुक्ति बैंक पी. ओ. के तौर पर हो गई थी. यहाँ तक पहुँचने के लिए मेहनत तो सभी प्रत्याशियों ने की थी किंतु उसके संघर्ष का एक और आयाम था. बचपन से सुनता आया था कि उसके ग्रह ऐसे हैं कि उसे किसी काम में सफलता नही मिलेगी. वह कुल के लिए कलंक बनेगा. सबसे अधिक अफ़सोस उसे तब होता जब उसके पिता जो कर्मयोगी भगवान कृष्ण के उपासक थे कर्म को नकार ग्रहों की दशा पर यकीन करते थे.
आज उन सभी की आशंकाओं का जवाब नियुक्ति पत्र उसके हाथ में था.
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