सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

पगफेरा


नलिनी बहुत उत्साहित थी. आज बेटी रोली पगफेरे के लिए आने वाली थी. ससुराल में बहुत व्यस्त कार्यक्रम था उसका.  कल विवाह के उपलक्ष्य में उसकी ससुराल में प्रीतिभोज था. परसों वह और संजय अपने हनीमून पर जाने वाले थे. उसकी तैयारी भी करनी थी अतः शाम तक संजय उसे विदा करा कर ले जाने वाले थे. 
उसने घड़ी देखी. नौ बज गए थे. दस बजे तक रोली और संजय आ जाएंगे. बहुत कम समय था. वह काम में जुट गई. 
बहुत तकलीफें सह कर नलिनी ने बेटी को पाला था. पति सरकारी नौकरी में थे अतः उनकी मृत्यु के बाद उसे नौकरी मिल गई किंतु अधिक शिक्षित ना होने के कारण तृतीय श्रेणि का पद मिला. तनख्वाह कम थी फिर भी उसने सब संभाल लिया. शिक्षा का महत्व समझ में आ गया था. अतः बेटी को पढ़ाने में कोई कसर नही छोड़ी. तकलीफें सह कर भी उसे उच्च शिक्षा दिलाई. 
रोली को एक प्रतिष्ठित कंपनी में जॉब मिल गई. वहीं उसकी मुलाकात संजय से हुई. दोनों में प्रेम हो गया. उसने सदा ही बेटी की खुशी में ही अपनी खुशी देखी थी. वह दोनों के विवाह के लिए तैयार हो गई. संजय के घर वाले भी राज़ी थे.  धूमधाम से उसने बेटी की शादी कर दी. 
नलिनी जानती थी कि संजय के घर वालों की हैसियत उससे बहुत अधिक है. इसलिए उसने अपनी सामर्थ्य से बढ़ कर खर्च किया. अपनी तरफ से तो उसने कोई कसर नही छोड़ी थी. फिर भी बेटी की ससुराल का मामला था. वह चाह रही थी कुछ पल बेटी के साथ बिता कर पूंछे कि सब ठीक तो है. जिससे उसका मन हल्का हो जाए. 
सवा दस बजे के करीब बेटी और दामाद आ गए. कुछ समय चाय नाश्ते में निकल गया. फिर वह लंच की तैयारी में जुट गई. बीच बीच में उन दोनों से बात भी कर रही थी. लेकिन वह कुछ समय सिर्फ रोली के साथ बिताना चाहती थी.
लंच के बाद संजय किसी ज़रूरी काम से बाहर चला गया. वह बेटी को ले कर अपने कमरे में आ गई. दोनों माँ बेटी पलंग पर लेट गईं. प्यार से बेटी के सिर को सहलाते हुए नलिनी ने पूंछा "ससुराल में सब ठीक है ना बिटिया. तुम खुश तो हो ना."
"क्या ठीक है मम्मी." रोली रुखाई से बोली "तुम्हें पैसों की मदद चाहिए थी तो मुझसे मांग लेतीं. मेरी सेविंग्स थीं. पर तोहफे तो ढंग के खरीदने चाहिए थे. कोई भी तोहफा किसी को पसंद नही आया." वह उठ कर बैठ गई "इतना तो सोंचती अब मुझे वहीं रहना है. कोई कुछ बोला नही पर सबके मुंह बन गए. मेरी कितनी बेइज़्ज़ती हुई."
नलिनी सन्न रह गई. उसका सारा उत्साह चला गया. उसने तो अपनी जान निकाल दी किंतु बेटी फिर भी नाराज़ थी. रिश्तों का ब्याज चुकाने में वह तो पहले कदम पर ही नाकाम हो गई थी.

पगफेरा

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

ना मे हाँ

सब तरफ चर्चा थी कि गीता पुलिस थाने के सामने धरने पर बैठी थी। उसने अजय के खिलाफ जो शिकायत की थी उस पर कोई कार्यवाही नहीं हुई थी।  पिछले कई महीनों से गीता बहुत परेशान थी। कॉलेज आते जाते अजय उसे तंग करता था। वह उससे प्रेम करने का दावा करता था। गीता उसे समझाती थी कि उसे उसमें कोई दिलचस्पी नहीं है। वह सिर्फ पढ़ना चाहती है। लेकिन अजय हंस कर कहता कि लड़की की ना में ही उसकी हाँ होती है।  गीता ने बहुत कोशिश की कि बात अजय की समझ में आ जाए कि उसकी ना का मतलब ना ही है। पर अजय नहीं समझा। पुलिस भी कछ नहीं कर रही थी। हार कर गीता यह तख्ती लेकर धरने पर बैठ गई कि 'लड़की की ना का सम्मान करो।'  सभी उसकी तारीफ कर रहे थे।

गुमसुम

अपने पापा के सामने बैठा विपुल बहुत उदास था. उसके जीवन में इतनी बड़ी खुशी आई थी किंतु उसके पापा उदासीन बैठे थे. तीन साल पहले हुए हादसे ने उससे उसके पिता को छीन लिया था. उसके पापा की आंखों के सामने ही नदी की तेज़ धारा मम्मी को बहा कर ले गई थी. उस दिन से उसके पिता जैसे अपने भीतर ही कहीं खो गए थे. विपुल ने बहुत प्रयास किया कि किसी तरह उनकी उस अंदरूनी दुनिया में प्रवेश कर सके. परंतु उसकी हर कोशिश नाकामयाब रही. इस नाकामयाबी का परिणाम यह हुआ कि वह स्वयं की निराशा के अंधेरे में खोने लगा. ऐसे में अपने शुभचिंतकों की बात मान कर उसने विवाह कर अपने जीवन को एक नई दिशा दी. वह निराशा के भंवर से उबरने लगा. लेकिन अपने पापा की स्थिति पर उसे दुख होता था. दस दिन पहले जन्मी अपनी बच्ची के रोने की आवाज़ उसे उसके विचारों से बाहर ले आई. वह उसके पालने के पास गया. उसकी पत्नी सो रही थी. उसने पूरे एहतियात से बच्ची को उठाया और उसे लेकर अपने पापा के पास आ गया. विपुल ने बच्ची को अपने पिता के हाथों में सौंप दिया. बच्ची उन्हें देख कर मुस्कुरा दी. कुछ देर उसै देखने के बाद उन्होंने उसे उठाया और सीने से लगा लिया. विप...

केंद्र बिंदु

पारस देख रहा था कि आरव का मन खाने से अधिक अपने फोन पर था। वह बार बार मैसेज चेक कर रहा था। सिर्फ दो रोटी खाकर वह प्लेट किचन में रखने के लिए उठा तो पारस ने टोंक दिया। "खाना तो ढंग से खाओ। जल्दी किस बात की है तुम्हें।" "बस पापा मेरा पेट भर गया।" कहते हुए वह प्लेट किचन में रख अपने कमरे में चला गया। पारस का मन भी खाने से उचट गया। उसने प्लेट की रोटी खत्म की और प्लेट किचन में रख आया। बचा हुआ खाना फ्रिज में रख कर वह भी अपने कमरे में चला गया। लैपटॉप खोल कर वह ऑफिस का काम करने लगा। पर काम में उसका मन नही लग रहा था। वह आरव के विषय में सोच रहा था। उसने महसूस किया था कि पिछले कुछ महीनों में आरव के बर्ताव में बहुत परिवर्तन आ गया है। पहले डिनर का समय खाने के साथ साथ आपसी बातचीत का भी होता था। आरव उसे स्कूल में क्या हुआ इसका पूरा ब्यौरा देता था। किंतु जबसे उसने कॉलेज जाना शुरू किया है तब से बहुत कम बात करता है। इधर कुछ दिनों से तो उसका ध्यान ही जैसे घर में नही रहता था। पारस सोचने लगा। उम्र का तकाज़ा है। उन्नीस साल का हो गया है अब वह। नए दोस्त नया माहौल इस सब में उसने अपनी अलग दुनि...