मानिक पुल के ऊपर खड़ा नीचे बहती नदी को देख रहा था. उसे लगा जैसे नदी उससे कह रही हो 'मुझमें समा जाओ मैं तुम्हारी सारी पीड़ा हर लूँगी.'
उसका मन बहुत व्यथित था. गरिमा ने आज उसके साथ अपना रिश्ता तोड़ दिया था. उसके इनकार से वह भीतर तक टूट गया था. उसने नदी में कूद कर अपने दुख का अंत करने का निर्णय कर लिया.
वह रेलिंग पर चढ़ रहा था कि तभी उसके फोन की घंटी बजी. यह रिंगटोन उसने अपने पिता के नंबर के लिए लगा रखी थी. उसने सोंचा आखिरी बार बात कर लेता हूँ. उसने फोन उठा कर धीरे से कहा "हैलो"
उधर से उसके पिता की आवाज़ आई "कहाँ हो. जल्दी घर आओ. मैं और तुम्हारी माँ खाने पर इंतज़ार कर रहे हैं."
मानिक ने सिर्फ हाँ कहा और फोन काट दिया.
वह फिर कूदने की तैयारी करने लगा. तभी उसके भीतर से आवाज़ आई 'यह क्या करने जा रहे हो. चार दिन के रिश्ते के लिए उन्हें छोड़ कर जा रहे हो जो तुम्हें इतना चाहते हैं.'
फोन की घंटी ने उसके दिमाग की घंटी बजा दी. नाकाम प्रेमी को नदी के हवाले कर एक आदर्श बेटा घर चला गया.
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