रमेश परेशान था. सुबह से एक भी खिलौना नही बिका था. वह इधर उधर देख रहा था. तभी उसे एक आदमी आता हुआ दिखाई दिया. वह आवाज़ लगाने लगा "साहब बच्चों के लिए खिलौने लेते जाइये."
वह आदमी रुक गया. उसने एक नज़र ठेले पर डाली. रंग बिंरंगे प्लास्टिक के खिलौने रखे थे. एक टीस सी उठी उसके मन में. 'घर का आंगन तो सूना पड़ा है. दोनों पति पत्नी की सारी प्रार्थनाएं अब तक अनसुनी ही थीं.' वह कहने ही जा रहा था कि नहीं चाहिए किंतु तभी रमेश ने अनुनय किया "ले लो साहब घर पर बच्चे भूखे हैं."
उस आदमी ने चुपचाप कुछ खिलौने खरीद लिए.
वह आदमी रुक गया. उसने एक नज़र ठेले पर डाली. रंग बिंरंगे प्लास्टिक के खिलौने रखे थे. एक टीस सी उठी उसके मन में. 'घर का आंगन तो सूना पड़ा है. दोनों पति पत्नी की सारी प्रार्थनाएं अब तक अनसुनी ही थीं.' वह कहने ही जा रहा था कि नहीं चाहिए किंतु तभी रमेश ने अनुनय किया "ले लो साहब घर पर बच्चे भूखे हैं."
उस आदमी ने चुपचाप कुछ खिलौने खरीद लिए.
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