प्रकाशक के दफ्तर में बैठे सत्यप्रकाश ने अपने नए उपन्याय की पांडुलिपि पर प्रतिक्रिया मांगी.
कुछ सोंचते हुए प्रकाशक ने कहा "अच्छा लिखा है किंतु ज़रा कुछ आज के समय को ध्यान में रख कर लिखें."
"पर मेरा उपन्यास तो आज के हालात पर ही आधारित है." सत्यप्रकाश ने आश्चर्य से कहा.
कुछ मुस्कुराते हुए प्रकाशक बोला "अजी आज टीवी सिनेमा फेसबुक आदि में उलझे पाठकों के लिए. समझ गए ना आप."
"मतलब" सत्यप्रकाश ने जानते बूझते प्रश्न किया.
"आप तो लेखक हैं कल्पनाओं के घोडे़ दौड़ा कर कुछ ऐसा लिखिए कि पढ़ने वाले को आनंद आ जाए." अर्थपूर्ण मुस्कान के साथ प्रकाशक ने कहा.
सत्यप्रकाश आवेश में बोला "मैं साहित्यकार हूँ मदारी नही."
सत्यप्रकाश के चेहरे पर उभरे आक्रोश को देख कर प्रकाशक ढिटाई से बोला "मैं भी व्यापारी हूँ. वही छापूँगा जो बिकेगा."
सत्यप्रकाश ने पांडुलिपि उठाई और दफ्तर के बाहर आ गया.
कुछ सोंचते हुए प्रकाशक ने कहा "अच्छा लिखा है किंतु ज़रा कुछ आज के समय को ध्यान में रख कर लिखें."
"पर मेरा उपन्यास तो आज के हालात पर ही आधारित है." सत्यप्रकाश ने आश्चर्य से कहा.
कुछ मुस्कुराते हुए प्रकाशक बोला "अजी आज टीवी सिनेमा फेसबुक आदि में उलझे पाठकों के लिए. समझ गए ना आप."
"मतलब" सत्यप्रकाश ने जानते बूझते प्रश्न किया.
"आप तो लेखक हैं कल्पनाओं के घोडे़ दौड़ा कर कुछ ऐसा लिखिए कि पढ़ने वाले को आनंद आ जाए." अर्थपूर्ण मुस्कान के साथ प्रकाशक ने कहा.
सत्यप्रकाश आवेश में बोला "मैं साहित्यकार हूँ मदारी नही."
सत्यप्रकाश के चेहरे पर उभरे आक्रोश को देख कर प्रकाशक ढिटाई से बोला "मैं भी व्यापारी हूँ. वही छापूँगा जो बिकेगा."
सत्यप्रकाश ने पांडुलिपि उठाई और दफ्तर के बाहर आ गया.
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