सब को लगता था कि बंसल जी का यह फैसला अचानक लिया गया था. लेकिन पिछले काफी समय से उनका मन उन्हें समझा रहा था कि जिस पर वह बेतहाशा भाग रहे हैं वह राह उनकी नही. यहाँ तो महज़ मृगतृष्णा है तृप्ति नही. उन्होंने ही मन की बात समझने में देर लगा दी. अपना निर्णय लेने से पूर्व उन्होंने अपनी पत्नी को सब बता दिया. एक सच्ची जीवनसंगिनी की तरह वह उनके फैसले में उनके साथ हो गईं.
दोनों ने अपनी अपनी ज़िम्मेदारियां बच्चों को सौंप दीं और अपनी राह पर चल पड़े.
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