शहर में जाने माने फोटोग्राफर प्रभाकर के द्वारा खींचे गए श्वेत श्याम छाया चित्रों की प्रदर्शनी लगी थी. फोटोग्राफी का शौक होने के कारण मैं भी प्रदर्शनी देखने गया था. प्रभाकर जी ने आम आदमी की ज़िंदगी को बहुत खूबसूरती से कैमरे में कैद किया था.
मैं चित्रों का आनंद ले रहा था. हॉल के एक कोने में एक दीवार पर तीन चित्र टंगे थे. उनमें से तीसरे चित्र ने मेरा ध्यान अपनी तरफ आकर्षित किया. यह चित्र एक भिखारिन का था. उसके खुले हुए वक्ष से चिपका एक शिशु दूध पी रहा था. वह दूथ पीते हुए उस बच्चे को बड़े प्यार से देख रही थी.
उसकी सारी विपन्नता के बावजूद उसके चेहरे पर छाया असीम संतोष अमूल्य था.
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें