'कुसुम समय कब पलट जाए कोई नही कह सकता. मै तो कहता हूँ कि तुम बाहर की दुनिया की भी जानकारी रखो ताकि मुश्किल समय में किसी पर आश्रित ना होना पड़े."
कुसुम के मन में अपने स्वर्गीय पति की यह सीख गूंज उठी. वह सोंच रही थी कि काश उसने अपने पति की सीख पर अमल किया होता.
पति की मृत्यु के बाद उसने आंख मूंद कर अपने जेठ पर भरोसा कर लिया. उसके हिस्से की संपत्ति की देख रेख का जिम्मा उन्हें सौंप दिया. आरंभ में तो सब ठीक था. वह उसे पाई पाई का हिसाब देते थे. उसकी और उसके बेटे की सभी जरूरतों का ध्यान रखते थे. लेकिन समय के साथ स्थितियां बदलने लगीं. हिसाब किताब दिखाना तो दूर की बात थी अब जरूरत के लिए भी कई बार कहना पड़ता था.
आज तो हद हो गई. कुसुम ने अपने जेठ से इच्छा जताई कि वह अपने पति का श्राद्ध करना चाहती है. उसकी बात सुन कर वह बोले "कुसुम तुम तो जानती हो कि इन सब में कितना खर्च हो जाता है. मुझ पर पहले ही तुम्हारा और तुम्हारे बेटे का बोझ है. मेरे लिए कठिन होगा."
कुसुम सन्न रह गई. अपने पति की कही बातें उसे याद आने लगीं. उसने तय कर लिया कि वह अब किसी पर आश्रित ना रह कर आत्मनिर्भर बनेगी.
अपने पति की आत्मा की शांति के लिए यह उसका सबसे अच्छा कदम था.
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