दरवाज़ा खोलते ही जैसे अनुजा ने सामने खड़े शख़्स को देखा उसका चेहरा उतर गया. उसने झांक कर देखा कि आस पास कोई था तो नही. फिर उसे अंदर बुला लिया.
भीतर आते ही उसने पूंछा "भइया आप जेल से कब छूटे."
उसके भाई ने जवाब दिया "परसों छूटा."
"आप समझ सकते हैं कि राजीव को आपका यहाँ आना अच्छा नही लगेगा. सोसाइटी वाले भी बातें बनाने में माहिर हैं." अनुजा ने अपनी नज़रें झुका कर कहा.
वह उठा और बहन के सर पर हाथ फेर कर बोला "खुश रहो." फिर बिना कुछ बोले चला गया.
जिस बहन को बदनामी से बचाने के लिए उसके हाथ जुर्म हुआ था उसे परेशानी में नही डाल सकता था.
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