बल्ब की पीली मद्धम रौशनी में भी मालती को अपने पति गुड्डू की पीडा़ साफ दिखाई दे रही थी. हलांकि गुड्डू की कोशिश थी कि वह उसे प्रकट ना करे.
उसका पूरा परिवार कूड़ा उठाने का काम करता था. गुड्डू ठेला चलाता था तथा वह और उसका बेटा राजू घरों से कूड़ा एकत्र कर उस ठेले में डालते थे. फिर दूर ले जाकर उसे एक मैदान में डाल कर आते थे. इस काम के लिए उन्हें एक घर से महिने के पचास से साठ रुपये मिल जाते थे.
कल जब वह लोग कूड़ा फेंकने के लिए मैदान में गये तो एक टूटी हुई काँच की बोतल का टुकड़ा गुड्डू के पांव में घुस गया. बहुत खून निकला. पेट भरना कठिन था ऐसे में दवा कहाँ से कराते. मालती ने हल्दी चूना बांध दिया. परंतु पीड़ा अभी भी थी.
मालती सोंचने लगी राजू यदि झंडे बेंच कर कुछ पैसे ले आए तो दवा वाले से पूंछ कर कोई मलहम खरीद लेगी. डॉक्टर के पास जाओ तो उसे फीस देनी पड़ेगी. वह दवा की दुकान वाला भला है मदद कर देगा.
वह उठ कर गुड्डू के पास आकर बैठ गई. उसके माथे पर धीरे से हाथ लगाया. गुड्डू ने आंखें खोलीं. चेहरे पर पीड़ा झलक रही थी. मालती ने पूंछा "बहुत दर्द हो रहा है. राजू आ जाए तो कोई मलहम मंगा लेती हूँ."
गुड्डू ने उसका हाथ अपने हाथ में ले लिया "परेशान मत हो. एक दो दिन में यह ठीक हो जाएगा." फिर कुछ परेशानी से पूंछा "राजू कहाँ है."
"बता रहा था कल आज़ादी का दिन है. इसलिए आज उसे झंडे बेचने का काम मिला है. कह रहा था अच्छा पैसा मिल जाएगा."
गुड्डू ने आह भर कर कहा "आज़ादी कैसी. हमारी हालत तो आज भी वैसी है जैसे हमारे पुरखों की थी. हो सकता है बड़े लोगों को मिली हो आज़ादी."
तभी राजू घर में घुसा. उसके हाथ में एक झंडा था. उसने दीवार के एक छेद में उसे फंसा दिया. मालती ने पूंछा "कुछ पैसे मिले." राजू ने जेब से पैसे निकाल कर अपनी माँ को दे दिए. मालती को तसल्ली हुई कि अब कोई मलहम खरीद सकती थी. पैसे रख कर उसने सवाल किया "इतनी देर कैसे हो गई."
"बस्ती के बाहर मैदान में रतनराज भइया सबको इकट्ठा कर बातें कर रहे थे. उसे ही सुनने लगा." राजू ने बताया. वह आगे बोला "जानती हो वह कहते हैं कि अगर अपनी दशा सुधारनी है तो हमें इकट्ठा होकर आवाज़ उठानी होगी."
"हम गरीब अनपढ़ लोग क्या आवाज़ उठाएंगे." गुड्डू ने संदेह किया.
राजू उत्साह से बोला "वह कहते हैं कि वह और उनके साथी बस्ती के बच्चों को मुफ्त में पढ़ाएंगे." उसने गुड्डू से पूंछा "मुझे पढ़ने दोगे." गुड्डू ने हाँ कर दी.
खाना खाकर तीनों सोने चले गए. गुड्डू सोंच रहा था कि क्या राजू जो कह रहा था हो सकेगा.
राजू आने वाले कल के सपने देख रहा था.
ख़्वाब
उसका पूरा परिवार कूड़ा उठाने का काम करता था. गुड्डू ठेला चलाता था तथा वह और उसका बेटा राजू घरों से कूड़ा एकत्र कर उस ठेले में डालते थे. फिर दूर ले जाकर उसे एक मैदान में डाल कर आते थे. इस काम के लिए उन्हें एक घर से महिने के पचास से साठ रुपये मिल जाते थे.
कल जब वह लोग कूड़ा फेंकने के लिए मैदान में गये तो एक टूटी हुई काँच की बोतल का टुकड़ा गुड्डू के पांव में घुस गया. बहुत खून निकला. पेट भरना कठिन था ऐसे में दवा कहाँ से कराते. मालती ने हल्दी चूना बांध दिया. परंतु पीड़ा अभी भी थी.
मालती सोंचने लगी राजू यदि झंडे बेंच कर कुछ पैसे ले आए तो दवा वाले से पूंछ कर कोई मलहम खरीद लेगी. डॉक्टर के पास जाओ तो उसे फीस देनी पड़ेगी. वह दवा की दुकान वाला भला है मदद कर देगा.
वह उठ कर गुड्डू के पास आकर बैठ गई. उसके माथे पर धीरे से हाथ लगाया. गुड्डू ने आंखें खोलीं. चेहरे पर पीड़ा झलक रही थी. मालती ने पूंछा "बहुत दर्द हो रहा है. राजू आ जाए तो कोई मलहम मंगा लेती हूँ."
गुड्डू ने उसका हाथ अपने हाथ में ले लिया "परेशान मत हो. एक दो दिन में यह ठीक हो जाएगा." फिर कुछ परेशानी से पूंछा "राजू कहाँ है."
"बता रहा था कल आज़ादी का दिन है. इसलिए आज उसे झंडे बेचने का काम मिला है. कह रहा था अच्छा पैसा मिल जाएगा."
गुड्डू ने आह भर कर कहा "आज़ादी कैसी. हमारी हालत तो आज भी वैसी है जैसे हमारे पुरखों की थी. हो सकता है बड़े लोगों को मिली हो आज़ादी."
तभी राजू घर में घुसा. उसके हाथ में एक झंडा था. उसने दीवार के एक छेद में उसे फंसा दिया. मालती ने पूंछा "कुछ पैसे मिले." राजू ने जेब से पैसे निकाल कर अपनी माँ को दे दिए. मालती को तसल्ली हुई कि अब कोई मलहम खरीद सकती थी. पैसे रख कर उसने सवाल किया "इतनी देर कैसे हो गई."
"बस्ती के बाहर मैदान में रतनराज भइया सबको इकट्ठा कर बातें कर रहे थे. उसे ही सुनने लगा." राजू ने बताया. वह आगे बोला "जानती हो वह कहते हैं कि अगर अपनी दशा सुधारनी है तो हमें इकट्ठा होकर आवाज़ उठानी होगी."
"हम गरीब अनपढ़ लोग क्या आवाज़ उठाएंगे." गुड्डू ने संदेह किया.
राजू उत्साह से बोला "वह कहते हैं कि वह और उनके साथी बस्ती के बच्चों को मुफ्त में पढ़ाएंगे." उसने गुड्डू से पूंछा "मुझे पढ़ने दोगे." गुड्डू ने हाँ कर दी.
खाना खाकर तीनों सोने चले गए. गुड्डू सोंच रहा था कि क्या राजू जो कह रहा था हो सकेगा.
राजू आने वाले कल के सपने देख रहा था.
ख़्वाब

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